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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद * २ स्थानकाध्ययने उद्देशः १ प्रत्यक्षप क्षज्ञानम् ७१ सूत्रम् XxxxxxxXKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX अंगोनी जेम अंगो, तेओमां प्रविष्टं-तेना मध्यमा रहेलु ते अंगप्रविष्ट, अने ते गणधरमहाराजावडे करायेलं 'उप्पन्नइ वे' त्यादि त्रण मातृकापदथी थयेलु, अथवा आचारादि ध्रुवश्रुत जाणवू. वळी जे स्थविरकृत अथवा मातृकापद त्रणथी भिन्न व्याकरण(प्रश्न)थी रचेल ते अध्रुवश्रुत, उत्तराध्ययन वगेरे अंगबाह्य जाणवू. भाष्यकार कहे छे:गणहर १ थेराइकतं२, आएसा १ मुक्कवागरणओवा२।धुव १ चलविसेसणाओ २, अंगाणंगेसु नाणत्तं ॥२१ श्री गौतमादि गणधरकृत द्वादशांगीरूप श्रुत ते अंगप्रविष्ट कहेवाय छे अने स्थविरो वगेरेथी रचायेलं (भद्रबाहुस्वामी वगेरेथी करायेल आवश्यकनियुक्त्यादि) ते अंगबाह्य कहेवाय छे. वळी गणधरने तीर्थकर संबंधी जे आदेश-उत्तर, उत्पाद, व्यय अने ध्रौव्वा- त्मक पद त्रणथी उत्पन्न थयेलं ते अंगप्रविष्ट अने प्रश्नपूर्वक-व्याकरण-उत्तर ते मुक्तव्याकरण, तेथी उत्पन्न थयेलु आवश्यकादि श्रुत अंगबाह्य कहेवाय छे. वळी सर्व तीर्थकरोना तीर्थमां नियत-निश्चयभावि जे श्रुत ते अंगप्रविष्ट कहेवाय छे अने अनियत-अनिश्चयभावि तंदुलबैयालिक प्रकीर्णकादि जे श्रुत ते अंगबाह्य कहेवाय छे. (२१), 'अंगवाही' त्यादि, अवश्य करवा योग्य ते आवश्यक, ते आवश्यक सामायिकादि छ प्रकारे कयु छेसमणेण सावएणय, अवस्स कायव्वयं हवइ जम्हा। अंतो अहो णिसस्स य, तम्हा आवस्सयं नामं ॥२२ साधु अने श्रावकवडे दिवस अने रात्रिने अंते जे कारणथी अवश्य करवा योग्य छे तेथी आवश्यक कहेवाय छे. आवश्यकथी जे भिन्न ते आवश्यकव्यतिरिक्तश्रुत छे. (२२), 'आवस्सगवतिरित्ते' इत्यादि० अहिं जे दिवस अने KARRRRRRRRRRXXXKKXKXKXK) For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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