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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org RXXX श्रीस्थानागपत्र सानुवाद ॥८४॥ XX-XXXXXKIXXX XXXXXXXXXXXXXXXXXXX) पज्जवे ' त्यादि-ऋज्वी-सामान्यने ग्रहण करनारी मति ते ऋजुमति-"आ वडे घडो चिंतवायो" ए अध्यवसाय (निश्चय)नुं |४२स्थानका ध्ययन निबंधन-कारण अर्थात् मनोद्रव्यनुं ज्ञान, तथा विपुला-विशेषने ग्रहण करनारी जे मति ते विपुलमति-" आनावडे जे घडो चिंतवायो" ते घडो सुवर्णनो छे, पाटलीपुत्र देशनो छ, आजे थयेल छे अने मोटो छ-ए वगेरे अध्यवसायना हेतु उद्देशः १ भूत मनोद्रव्यना विशेष ज्ञानरूप छे. भाष्यकार कहे छे प्रत्यक्षपरोरिजु सामण्णं तम्मत्त-गाहिणी रिजुमती मणोनाणं पायं विसेसविमुह, घडमत्तं चिंतितं मुणइ॥१५ वज्ञानम् ७१ सूत्रम् विउलं वत्थुविसेसण-माणं तग्गाहिणी मती विउला। चिंतियमणुसरइ घडं, पसंगओ पज्जयसएहि॥१६ बन्ने गाथानो भावार्थ कहेलो छ (१६-१७), 'आभिणिबोहिए' इत्यादि श्रुतने आश्रित जे ज्ञान ते श्रुतनिश्रितमतिज्ञान अथवा श्रुत आश्रित करायलुं छे जेनावडे ते श्रुतनिश्रितमतिज्ञान, व्यवहार कालथी पूर्व श्रुतवडे संस्कारवाळी मतिबाळाने जे वर्तमानमा श्रुतनी अपेक्षा विना ज्ञान थाय छे ते अवग्रहादिस्वरूप श्रुतनिश्रित छे. वळी पूर्वे श्रुतवडे असंस्काखाळी मतिविशिष्ट क्षयोपशमना अतिशय निपुणपणाथी औत्पत्तिकी आदि बुद्धिरूप जे ज्ञान उत्पन्न थाय छे ते अथवा श्रोत्रेन्द्रिय वगेरेथी थयेलं ते अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान छे. (१८), भाष्यकार कहे छे १. प्राय: ऋजुमति, विशेषज्ञानथी विमुख होय छे. २ प्रसंगथी सेंकडो पर्यायोबडे चिंतवायला घडाने जाणे छे. xxxxxxxxxxxxxxKKKKKKM ॥८४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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