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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ८३ ॥ www.kobatirth.org बनारुं छे, परंतु साक्षात्कार करावनार नथी (१), 'पच्चक्खे' त्यादि, केवलं- एक ज्ञान ते केवलज्ञान, तेथी जुदुं ते नोकेवलज्ञान ते अवधि, मनःपर्यायरूप (२), 'केवले ' त्यादि ' भवत्थके० चेव 'ति संसारमा रहेल केलीनुं जे ज्ञान ते भवस्थकेवलज्ञान एवी रीते सिद्धनुं जे केवलज्ञान ते सिद्ध केवलज्ञान (३), 'भवत्थे' त्यादि, जे काय व्यापारादि योगे सहित छे ते सयोगी. अहिं समासांत प्रकरणथी इन् प्रत्यय थयेल हे सयोगीरूप भवस्थनुं जे केवलज्ञान ते सयोगीभवस्थकेवलज्ञान. नथी योगो जेने ते अयोगी अथवा न योगीति अयोगी-योगवाळो नहि ते अयोगी. शैलेशीकरणमा रहेल, बाकी तेवी ज रीते छे. (४), 'सयोगी त्यादि-सयोगीपणामां प्रथम समय छे जेने ते प्रथमसमय सयोगी, एवीज रीते अप्रथम-बीजा वगेरे समय छे जेने ते अप्रथमसमयसयोगी, शेष पूर्वनी माफक जाणवुं (५), 'अहवे' त्यादि - सयोगी अवस्थानो छेलो समय छे जेनो ते चरमसमयसयोगी, दोष पूर्वनी जेम जाणवुं (६), 'एव' मिति सयोगी सूत्रनी जेम प्रथम, अप्रथम, चरम अने अचरम विशेषण सहित सयोगी सूत्र पण कहेतुं (७–८), 'सिद्धे'त्यादि - वर्तमान समयमा जे अंतर रहित थयेल सिद्ध, ते एक अथवा अनेक होय छे तथा परंपरसिद्ध-वे वगेरे समयो जे सिद्धने थया छे ते परंपरसिद्ध, ते एक अथवा अनेक होय छे. तेओनुं जे केवलज्ञान, ते ते प्रमाणे व्यपदेश कराय छे (९), (१०-११-१२) 'ओहिनाणे' त्यादि 'भवपचइए'त्ति अवधिज्ञानने क्षयोपशमनुं निमित्तपणुं छते पण भवप्रत्यकिना क्षयोपशमने पण भवप्रत्ययरूपना १. केवलज्ञानमां वास्तविक भेद नथी परंतु स्वामानी अपेक्षाए भेद छे. जेम पाणीमां भेद नथी तथापि पात्र भेदे पाणीनो उपचार थाय छे. * अणंतर सिद्धकेवलनाणेत्यादि १०, ११ अने १२मा सूत्रनो व्याख्या करेल नथी, परंतु मूलसूत्रना अनुवादमां तेनो अर्थ लखेल छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ स्थान काध्ययने उद्देशः १ प्रत्यक्षपरोक्षज्ञानम् ७१ सूत्रम् ॥ ८३ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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