SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ७ ॥ 4200077484 YE www.kobatirth.org उत्कीर्त्तन ते एक स्थान अध्ययन, द्विस्थान अध्ययन अने त्रिस्थान अध्ययन इत्यादि गणन, ते केवल संख्या एक, बे, त्रण इत्यादि ते गणना अनुपूर्वी त्रण प्रकारनी छे-१ पूर्वानुपूर्वी २ पश्चानुपूर्वी, ३ अनानुपूर्वी पूर्वानुपूर्वीवडे विद्यमान प्रथम अध्ययन कहेवाय छे, पचानुपूर्वीवडे दशमुं अध्ययन अने अनानुपूर्वीवडे अनियत छे. २. नामकथन. तेमज नाम दश प्रकारे छे. एक नाम, द्वि नाम इत्यादि दश नाम पर्यंत. तेमां छ नाममां आ अध्ययननो अवतार थाय छे. | तेमां पण क्षायोपशमिक - भावमां समग्रश्रुत क्षायोपशमिक भावरूप होवाथी कयुं छे केछव्विनामे भावे, खओवसमिए सुयं समोयरति । जं सुयणाणावरण - क्खओवसमजं तयं सव्वं ॥ १२ ॥ [ अनुयोग द्वार सूत्रमां ] छ प्रकारना नामोमां औदयिकादिक छ भावो कहेला छे. तेमांनां क्षायोपशमिक भावमां सर्व श्रतनो समवतार थाय छे. कारण ? श्रुतज्ञानावरण कर्मना क्षयोपशमथी सर्व श्रुत उत्पन्न थाय छे. ३. प्रमाणकथन. तथा द्रव्यादि भेदथी प्रमाण चार प्रकारे छे, तेमां आ अध्ययन, क्षायोपशमिक भावरूप होवाथी, भाव प्रमाणमां अवतरे छे. यत आह दव्वादि चउब्भेयं, पमीयते जेण तं पमाणंति । इणमज्झयणं भावोत्ति, भावमाणे समोयरति ॥ १३ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 9934:4 १ स्थाना ध्ययने उपक्रम वर्णन. ॥ ७ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy