SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ५९ ॥ www.kobatirth.org विशिष्ट मध्यमप्रदेशावगाढवाळा स्कंधविशेषनुं एकपणुं कहे छे. एगे जंबूद्दीवे २ सव्वदीवसमुद्दाणं जाव अर्द्धगुलगं च किंचिविसेसाहिए परिवखेवेणं । सू० ५२, एगे समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउव्वीसाए तित्थगराणं चरमतित्थयरे सिद्धे बुद्धे मुत्ते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे । सू० ५३, अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं एगा रयणी उड्डउच्चत्तेणं पन्नत्ता । सू० ५४, अद्दाणक्खत्ते एगतारे पन्नत्ते चित्ताणवखत्ते एगतारे पं० सातीणवखत्ते एगतारे पं० । सू० ५५, एगपएसेोगाढा पोग्गला अणंता पन्नत्ता, एवमेगसमयठितिया एगगुणकालगा पोग्गला अणता पन्नत्ता, जाव एगगुणलुक्खा पोग्गला अनंता पन्नत्ता । सू० ५६ ॥ एगट्ठाणं समत्तं ॥ मूलार्थ:- सर्व द्वीप अने समुद्रोना मध्यमां जंबूद्वीप नामनो द्वीप एक छे यावत् त्रण लाख, सोल हजार, बसो ने सत्यावीश योजन, त्रण गाउ, बसो अठावीश धनुष्य अने साडातेर अंगुल कंडक अधिक परिधिवाळो छे. (सू०५२) श्रमण भगवान् श्री महावीरस्वामी आ अवसर्पिणी कालमां, चोवीश तीर्थंकरमां छल्ला तीर्थंकर एकला, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् सर्व दुःखथी रहित थया (सू० ५३). अनुत्तर विमानना देवोनी काया एक हाथनी ऊर्ध्वपणे ऊंची कहेली छे (सू० ५४). आद्रा नक्षत्रनो तारो एक कहेल छे, चित्रा नक्षत्रनो तारो एक कहेल छे, स्वातिनक्षत्रनो तारो एक छे. (सू० ५५) एक प्रदेशने अवगाही रहेला पुद्गलो अनंत For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir **XXXX १ स्थाना ध्ययने स्कंधविशेष स्य एकत्वम् ५२-५६ सूत्राणि ॥ ५९ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy