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श्रीस्थानाङ्गसूत्र
सानुवाद ॥ ५३ ॥
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जेसिमवड्डो पोग्गल - परियट्टो सेसओ उ संसारो । ते सुक्कपक्खिया खलु, अहिए पुण किण्हपक्खी आ॥ १००
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जे जीवोनो अपार्द्ध - किंचित् न्यून पुद्गलपरावर्त्त संसार बाकी रह्यो होय ते निश्वयथी शुक्लपाक्षिको कहेवाय छे अने जेओनो अर्द्ध पुद्गलपरावर्तथी अधिक संसार होय ते कृष्णपाक्षिको कहेवाय छे. आ वे पक्षोवडे विशेषित आ चोथो दंडक छे. ४. एगा कण्हलेसाण' मित्यादि, जेनाथी जीव कर्मनी साथे चोंटे छे ते लेश्या. यदाह श्लेष इव वर्णवंर्धस्य कर्म्मबंधस्थितिविधात्र्यः " वर्णबंध - चित्रकार्यमां श्लेष ( सरेस ) नी जेम कर्मबंधनी स्थितिने करनारी आ लेश्याओ छे. तथा" कृष्णादि द्रव्यनी सहायताथी स्फटिकनी जेम आत्मानो जे परिणाम, ते परिणाममां आ ' लेश्या ' शब्द जोडाय छे. " आ लेश्या, योगनी परिणतिरूप होवाथी अने योग शरीरनामकर्मनी परिणतिविशेष छे तेथी शरीरनामकर्मनी परिणतिरूप छे. प्रज्ञापना सूत्रनी टीकाना करनारा श्रीमान् हरिभद्रसूरिए योगना परिणाम ते लेश्या छे, एम कधुं छे. शंका-योगनो परिणाम लेश्या म कहेवाय ? समाधान - जे हेतुथी सयोगी केवली, शुक्ललेश्याना परिणामवडे विचरीने आयुष्यनुं शेष अंतर्मुहूर्त्त रहते छते योगनुं रुंधन करे छे, तेथी अयोगीपणुं अने अलेश्यपणुं प्राप्त करे छे आ कारणथी जणाय छे के योगनो परिणाम ते लेश्या वळी ते योग शरीरनामकर्मनी परिणतिविशेष छे, तेथी कहेलुं छे के कर्म ज कार्मण शरीरनुं अने अन्य औदारिकादि शरीरोनुं कारण छे, तेथी औदारिक शरीर युक्त आत्मानो जे वीर्यपरिणतिविशेष ते (१) काययोग छे तथा औदारिक, वैक्रिय अने आहारक शरीरना
१. आलोक प्रशमरति ग्रंथना ३८ मां श्लोकनो उत्तरार्द्ध छे.
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१. स्थानाध्ययने लेश्यावर्णनम्
५१ सूत्रम्
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