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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ३ प्रस्ताव ॥३०॥ 8-81-२RAKAR सिट्टकविजणविरझ्याई नाडयाई भरहविजायियक्खणेहिं हावभावहत्ययाइपत्यावणपडुएहिं नाडइज्जपुरिसेहिं नि-1 विधभूतिसामेइ य वेणुवीणाणुगयं गायणजणाओ बहुघोलणप्पयारमणहरं पंचमगेयं, तहा एगंतदेसटिओ निसुणेइ दुईणं क्रोडा. सोवालंभवयणाई। कहं ? तीसे संकेयं संसिऊण पडिजुबइमणुसरतेणं । नाह! तए जाजीवं दिन्नो लहुयत्तणकलंको ॥ १७ ॥ सुहय ! तुह विरहदुस्सहसिहिपसमत्थं ममाहरंतीए । तीसे सरसीसुं निट्ठियाई नवनलिणिनालाई ॥ १८ ॥ परिसरसहयारुग्गवनवमंजरिखंडणेण पइदियहं । तीसे ताण निमित्तं घट्टा मज्झंगुलीण णहा ॥ १९॥ पच्चासण्णे कयविविहकलरचे नीलकंठकलयंठे । परिसंता मज्झ भुया पइक्खणं उडवंतीए ॥२०॥ एइ पिउ एइ पिउ एसो सो हवसुतं खणं धीरा। थक्का मेण्हि जीहा पुणरुत्तं वाहरंतीए ॥ २१ ॥ इय एरिसा अवस्था वट्ट तुह पणयिणीऍ दुविसहा । जइ जीवंति वंसि कुमार! ता तं लहुं सरसुं ॥२२॥ तहा कयाइ गोत्तखलियपरिकुवियकामिणीपसायणप्पवणवयणप्पवंचविरयणेण कयाइ सुयसारियासंलापवि-11 गोएण कयाइ परोप्परसवत्तिकामिणीकयकलहकोलाहलनिसामणेग कयाइ णाणाविहदूरदेसोबणीयापुवतस्संदोहदोहलगदाणेण, कयाइ संमयवणसिहंडितंडवावलोयणेण विविहं कीलइ । अण्णया य कुमारस्स कामिणीहि सम दुरोदरेण रमंतस्स समागओ मझंदिणसमओ। CACALCASALAMALS For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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