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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * A प्रस्तावना श्रीगुणचंद महावीरच. ।७॥ SECREASESSAGAR धृष्टताभर्यु कृत्य पण करेलुं छे. ते-ते पंडितोनी आवी केटलीक-केटलीक वातोने रदीयो आ महाग्रंथ आपोआप आपतो जाय छे. हा ! महाज्ञानी शास्त्रकार महर्षिओनी सत्यार्थ प्रतिपादकतामां ज जेने अश्रद्धा होय एवा श्रद्धाकंगालो माटे तो श्रद्धा जन्माववानो कोई उपाय ज नथी होतो. तारकशिरोमणि श्री तीर्थकर भगवंतो प्रत्ये अनहद-अपूर्व-अद्भुत-अनुपम-असाधारण-अनन्य भक्तिभाव होवो ते दरेके दरेक साधकप्रथम लक्षण छे. शास्त्रसमंदरनुं अवगाहन करता करतां पण आखर तो ए भगवद्भक्तिभावने ज पामवानो छे. श्री अरिहंतो प्रत्ये जागता भक्तिभावमां तो करोडो-करोडो भवोना कातिलमां कातिल कर्मोनी पण कत्लेआम करवानी कल्पनातीत ताकात रहेली छे. आ ध्येयने सिद्ध करवा माटे आ महाग्रंथनुं वाचन खूब खूब सहायक बनी रहे तेवू छे. __ श्री अर्हद्भक्तिना तात्त्विक भावोने आत्माना एक-एक प्रदेशे प्रतिष्ठित करनारा महान युगपुरुष, ऐदंयुगीन प्रवर-प्रकृष्ट धर्मनेता, स्याद्वादवादधीतसकल विचारसार, व्याख्यान वाचस्पति, कलिकाल कल्पतरु आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजाधिराजानी मनासृष्टिमां आ ग्रंथकृतिनुं एक आगq-अपूर्व स्थान हतुं. वारंवार आ ग्रंथनुं पारायण करीने तेओश्रीए आ महाग्रंथर्नु उपनिषद् हृदयमा आत्मसात् कर्यु हतुं. अमदावाद-पालडी-मर्चन्ट सोसायटी जैन संघना सत्पुरुषार्थथी आजे आ महाग्रंथने नवजीवन अने चिरायुष्यनी प्राप्ति थई रही छे, ते खूब अनुमोदनीय छे. तारकेश्वर, त्रिशलानंदन, त्रिजगद्गुरु, त्रिलोकप्रकाश, त्रिभुवनपूज्य श्री श्रमण भगवान महावीर परमात्माना उद्बोधक जीवन- कवन है HILIRLASHISTORIA ।।७।। For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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