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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sivi Kailassagarsuri Gyanmandir सुलभचरणपाणियत्तणेण गावीओ चरंति, तेण सा गोभूमी बुचइ । तत्थ य कलहपियत्तणेण गोसालो गोवालए द्र भणइ-अरे मिलिच्छा ! जुगुच्छणिजरूवा ! एस मग्गो कहिं वच्चइ ?, गोवेहि भणियं-अरे पासंडिया! कीस अम्हे | सानिकारणं अक्कोसेसि ?, सो भणइ-दासीपुत्ता! पसुयपुत्ता! जइ न मरिसिहिह ता सुटुअरं अकोसिस्सामि, किं| | अलियमेयं ?, मिच्छजाइया एरिसगा चेव तुब्भे, किं जहट्टियपि न भणिस्सामि ?, को मे तुम्ह पडिभओत्ति, सातओ तेहिं समुप्पन्नगाढकोवेहि मिलित्ता पण्हिमुट्टिलेहि विहवित्ता बद्धो वंसीगहणे य पक्खित्तो, तत्थवि पुवनाएण करुणाए पहियजणेण विमोइयंमि गोसाले तिहुअणगुरू रायगिहे नयरे अट्ठमवासार काउमुवसंपजइ, विचित्ताभिग्गहसणाहं च चाउम्मासखमणं आरंभेइ । तस्स पजंते बहिया आहारग्गहणं कुणइ । | तओ अणिजरियं अजवि बहुं कम्मं अच्छइत्ति चिंतिऊण पुणोऽवि सामी अत्यारियादिद्वंतं परिभावितो कम्मनिजदूरणनिमित्तं अचंतपावजणसंगएसु लाढावजभूमिसुद्धभूमिनामेसु मिलिच्छदेसेसु गोसालेण समेओ विहरिओ। तत्थ य |ते अणारिया कयाइ असुणियधम्मक्खरा निरणुकंपा लोहियपाणिणो परमाहम्मियासुरसरूवा भयवंतं विहरमाणं पासित्ता हीलंति निति तहाविहप्पयारेहिं विद्दविति, साणादओ य दुट्ठसत्ते सामिस्स अभिमुहं मुयंति । अवि य जह पविरेयणतणुतयतच्छणखारोवलेवपामोक्खं । किच्छबिगिच्छं विजं कुणंतमभिणंदए रोगी॥१॥ तह जयनाहोवि समग्गमुग्गउवसग्गकारयं लोयं । उवयारिबंधुवुद्धीए बंधुरं पेहइ पहिट्ठो ॥२॥ NCHALCOHOROSSES AAAAAAAAAA For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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