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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACCORG सीए ण हवइ एसा सामन्ना, ता फलियबमियाणिं अम्ह मणोरहपायवेणंति चिंतिऊण एवं थोउमारद्धाई अजं विहडियनिविडदुहनिगड पविहाडिय [अज परपवरसुगई मंदिरदुवाराई। अजं चिय करकमलि लीण, सुहाई संसारसाराई ॥१॥ अजं चिय तिहुयणसिरीहि, अम्हि पलोइय नाह! तुह लोयणपहि गयउ, नासियदोसपवाह ॥ २॥ अहह अम्हेहिं तिक्खदुक्खोहसिहितत्तगत्तिहिं, कह नाह! तुम्ह पयमंडवंतरि । नहनिवहनिम्मलरयणकिरणजालसंछाइयंबरि ॥३॥ संपइ लडु निवासु फुड्डमरुपहिएहिं व देव! । जंतुह दिटुं मुहकमलु, खालियकम्मवलेव ॥४॥ एवं च भत्तिसाराहिं सुसिलिछाहिं मणाणंददायिणीहिं गिराहिं हरिसुप्फुललोयणाहिं थोऊण पुणो पुणो निडालतडताडियधरणिवट्ठाई भणिउमाढत्ताई-देव! जइ एत्तो अम्ह दारगो वा दारिगा वा तुम्ह पसाएण होजा ता इमं तुह भवणं कणयकलसकलियसिहरं थूरधंभाभिरामविसालसालापरिक्खितं कविसीसयसओवसोहियं पवरद्वापागारसंपरिग्गहियं सुसिलिट्ठठावियसालभंजियासुंदरगोयराणुगयं कारवेमो, सयावि तुम्ह भत्तिपरायणाणि य होमो, अणवरयं पूयामहिमं च विरएमोत्ति भणिऊण उजाणकीलं काऊण गयाणि सगिहं । अह तेर्सि भत्तिपगरिसागरिसियहिययाए अहासन्निहियवाणमंतरीए देवयाए अणुभावेण आहूओ भदाए सेट्ठिणीए गम्भो, समुप्पन्नो For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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