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श्रीगुणचंद महावीरच० ५प्रस्ताव
प्रवास,
॥१६
॥
GANGA
सोऽवि धुवमेयं कजं पसाहइस्सइ, दुलहो तुम्हारिसो अतिही, गोभद्देण भणियं-पिए! साहेसु परपत्थणं मोत्तूण अर्थार्जनाय अन्नमुवायं, पत्थणा हि नाम नरस्स जणेइ मरणसमयनिविगेसत्तणं, तहाहि-जायणापयट्टस्स सन्निवायाभिभूयब,
गोभद्रस्य पक्खलइ वाणी विगलंति विच्छायछायाओ अच्छीओ विगयसोहं हवइ वयणकमलं कंपति अंगाई पयर्टति दीह-16 दीहा उस्सासा संखुभइ हिययंति । अविय- तावचिय कुमुयमयंकनिम्मला विप्फुरति गुगनिवहा । जाव परपत्थणाकलुसपंकलेवं न पावेति ॥१॥ तावच्चिय पूइज्जइ गुरुत्तबुद्धीए परमभत्तीए । जावऽत्थित्तं सत्तुत्तणं व पयडेइ न पुरिसो॥२॥ तावञ्चिय सुहिसयणतणाई दंसंति निच्छियं लोया । देहित्ति दुट्ठमक्खरजुयलं जा नेव जपेइ ॥३॥ देहित्ति जंपिरेणं माणविमुकेण विणयहीगेणं । धम्मत्थवजिएण य जाएणवि को गुणो तेण? ॥४॥ ता अन्नमुवायंतरमहुणा मम दुकरंपि किंपि पिए! । साहेसु पत्थणंपिहु मरमाणोवि हुन काहामि ॥५॥ इय सा तनिच्छियमुवलब्भ खणमेगं चिंतिऊण भणिउमारद्धा-अजउत्त! जइ एवं ता अत्थि अन्नो उवाओ, परं बहुसरीरायाससजो अचिरकालसाहणिज्जो य, जइ भणह ता निवेएमि, गोभद्देण भणियं-पिए! को दोसो ?, निवे
॥१६॥ एहि, तीए भणियं-सुणेसु, अत्थि पुखदेसे असंखदेवउलमालालंकिया वाणारसी नाम नयरी, तीसे समीये फुरंतफारभंगुरतरंगाविद्धविसुद्धसलिला हंसचक्कवायमिहुणोवसोहिया अणवरयवहंतमहासलिलप्पवाहपूरियरयणागरा गंगा नाम
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