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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णमग्गणजणो चेत्तस्स बहुलट्ठमीए उत्तरासादनक्खते पच्छिमपहरावसेसे दिवसे कच्छ महाकच्छपमुहाणं नियनियपुण्ण(त) निहित्तरज्जवावडाणं चउहिं सहस्सेहिं मंडलेसराणं परिवुडो देवदानवुक्खित्तविचित्तचित्तोव सोहियसुदंसणाभिहाणसिविकाधिरूढो परमविभूईए समग्गकाणणलच्छिलीलावणंमि उज्जाणे कयक कितवकम्मो परिचत्तसवंगसंगिरयणाभरणो सयमेव चाउमुट्ठियं लोयं काऊण कयसिद्धनमोकारो पडिवण्ण सव्वसावज्जजोगविरती बत्तीस सुरेसरेहिं चउव्विदेवनिकायसहिएहिं सम्भावसाराहिं महत्थाहिं पसत्थाहिं गिराहिं थुव्यमाणो पंचिंदियदित्ततुरयदमणो समणो जाओत्ति ॥ सुररायनिसिविसिसमंसावलंचि वहमाणो । कच्छमहाकच्छपमोक्खभिक्खुलोएण परियरिओ ॥ १९ ॥ परिचत्तसव्वसावज्जजोगसंगो तिगुत्तिगुत्तो य । अप्पडिबद्धो गामाणुगाममह विहरिओ भययं ॥ २० ॥ जुम्मं । कणसमिद्धसमुद्धरा य मणुया मुणंति नो तइया । का भिक्खा के तग्गाहिणोत्ति भिक्खं भमंतंमि ॥ २१ ॥ परमेसरंमि ताहे नियपहुपणएण कणगकरितुरए । इत्थी महत्थवत्थे पणया मणुया पणार्मेति ॥ २२॥ जुम्मं । भिक्खं अपायमाणा कच्छमहाकच्छपभिइणो मुणिणो । पइदियहमणसणेणं संजायसरीरसंतावा ॥ २३ ॥ लोकनायगे मोणमस्सिए ते उपायमलभंता । परिसडियपंडुपत्ताइभोइणो काणणंमि ठिया ॥ २४ ॥ जुम्मं भयकंपि निष्पकंपो सुरसेलो इव विसिट्ठसंघयणो । पइदिणमदीणचित्तो एगागी विहरइ महिंमि ॥ २५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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