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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वुहिमहमुवागओ, अओ मए एयस्त बद्धमाणोत्ति नामधेयं कायर्वति, तम्हा इयाणिपि तुम्ह समक्खं एयमेव नाम हवउत्ति, तेहिं भणियं-देव! जुत्तमेयं, गुणनिप्फन्ननामधेजे विजमाणंमि कीस न जहट्ठियमभिहाणं कीरइत्ति ?, एवं तेहिं जंपिए पइट्ठियं जयगुरुणो बद्धमाणोत्ति नाम, जाओ परमप्पमोओ, पुरंदरेणावि अयलो भयभेरवोवसग्गेहि खंतिख मो य इतिकाऊण वरं महावीरोत्ति नामधेयं से कयंति, इय निवत्तियाभिहाणो सुरसंक्रामियकामियपवर| रसाए निययंगुलीए पाणेण कयभोयणकायबो जयगुरू पंचहिं धावीहिं परियरिओ अंतेउरीलणेण सायरं चेव लालिजमाणो अम्मापियरेहिं बहुप्पयारं चरणचंकमणं काराविजमाणो चेडचडयरेणं पइक्खण मुलाविजमाणो सायरं देवदेवीर्विदेण पजुवासिज्जमाणो निरंतरं गीएहिं गिजमाणो पाढहिं पढिजमाणो चित्तेहिं उबलिहिजमाणो दंसणूसुएहि लोएहि अहमहमिगाए पलोएजमाणो गिरिकंदरगउच्च कप्पपायवो वहिउमारद्धोत्ति कमेण य पडिपुन्नसरीरावयवो तापिच्छगुच्छसच्छहपरूढसिणिद्धमुद्धरुहसिहंडो विसुद्धपबुद्धबुद्धिपगरिसागिठ्ठलट्ठभासाविसेसविसारओ पडिपुन्नसुयसायरपारगामी ओहिन्नाणमुणियचक्खुगोयराइकंतवत्थुवित्थारो अतुच्छ सुइनेवत्वधरो सयललोयलोयणाणंदजणणं देसूणट्ठबरिसपजायं कुमारत्तणमणुपत्तो समाणो भयवं बालभावसुलहत्तणओ कीडारईए अणेगेहिं समवएहिं मंतिसामंतसेडिसेणावइसुएहिं खेडविहिवियक्खणेहिं समं पारद्धो रुक्खखेडेण अभिरमिउं, तत्थ य एसा ववत्था-जो रुक्खेसु सिग्धं आरुहद उत्तरइ य सो सेसाई डिभाई पट्ठीए आरुहिऊण वाहेद, इओ य सोहम्मे %%44ॐॐॐ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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