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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद नवि से छुहा न वाही नेव भयं नेव विजए दुक्खं । विजयाहिवस्स रण्णो खंधावारस्सवि तहेव ॥१॥ टू मेघमुखोपमहावीरच. अह पियमित्तनरिंदो संपत्ते सत्तरत्तपजते । चिंतेइ को णु एसो जो मं विद्दवइ सलिलेणं? ॥२॥ द्रवः उत्तर ३ प्रस्तावः खंडजया. एत्थंतरंमि आबद्धपरियरा विविहपहरणसमेया। सोलस जक्खसहस्सा मेहमुहाणं गया पासे ॥३॥ ॥६७॥ मणिया य तेहि रे रे अप्पत्थियपत्थिया धुवं तुम्हे । जं चक्कवट्टिणोऽविहु उवसग्गं एवमायरह ॥४॥ ता मुंचह चक्खुपहं अहवा जुद्धत्थमभिमुहा होह । इइ भणिए मेहमुहा गया चिलायाण पासंमि ॥५॥ साहंति सबवइयरमसमत्यत्तं च अत्तसत्तीए । नरवइसेवाकज्जे पेसेंति य ते चिलाएऽवि ॥६॥ अह मुक्ककेसहत्था पहरणरहिया नियंसिओलपडा । भयवसविसंतुलंगा गंतूण नमंति ते मेच्छा ॥७॥ कणगं विचित्तरयणे अन्नंपि विसिट्टवत्थुमप्पिति । पडिवजिय तस्सेवं नियावराहं च खामेति ॥ ८॥ एवं च पवजियसेवा मिलेच्छा सम्माणिऊण चक्किणा विसजिया सट्ठाणेसु, सेणावईवि सिंधुमहानईए बीअखंडसाहणत्यं पेसिओ पुषविहीए, तं च साहिऊण पच्छाऽऽगए तमि पियमित्तो राया चकाणुमग्गेण पढिओ वेयड्डा- ॥६७॥ भिमुहं, कमेण य पत्तो पचयनियंबदेसं । तओ मणसीकरेइ उत्तरदाहिणसेढिविज्जाहरे, तेऽविय भयखुभियचित्ता तनाणाविहकणगरयणपमुहपहाणवत्थुसमप्पणपुत्वयं नरवइणो सिरसा सासणं पडिच्छंति । सेणावईऽवि पुबकमेण गंगा-1 महानईपुवखंडं साहिऊण पासमलियइ ॥ CALCREASEACष्ट्र For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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