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परि० २९]
११३
सूरिविद्यास्तोत्रम् सिरिबम्भलोयवासी सोमणसो नामओ य बहुसत्थो । सेवइ तियसाहिवई सगोयमं मन्तवरराय ॥११॥ अट्टकुलनागराओ सहसफणो सिरनिविट्ठकरमउलो । सेवड धरणिंदो घिय सगोयम मन्तवररायं ॥१२॥ रोहिणिपमुहा देवी चउसद्विसुराहिवा तहा अन्ने । सेवइ गोयमचरणे जक्खा जक्खाण चउघीसं ॥१३॥ कणयमयसहस्तपत्ते कमलम्मि निवेसिओ उ लद्धिजुओ। बहुपाडिहेरकलिओ झायव्यो गोयममुणिंदो ॥१४॥ औं क्राँ ह्रीं श्री एपणं मन्तेणं झाणारंभे ठविज्जए णिच्चं। अंगुलिमुद्दाकरणे सन्निहियसुरस्स समवाओ ॥१५॥ सन्निहियसुरवराणं उस्सग्गो कीरए सुपूया य । कप्पूरधूववासेहिं सव्वहा विहियबम्भवओ ॥१६॥ थोवजलविहियन्हाणो वरवत्थविभूसिओ य तिकालं । कम्मक्खयहेउ जो सुमरइ विज्ज इमं लक्ख ॥१७॥ ॐ किरिपिरिसिरिहिरि आयरिय एयरस मन्तरायस्स । जावं तिलक्खमाणं करेइ जो सो गोयमो होइ ॥१८॥ सोहणपयपरमिट्ठी पवयणसुरही कयंजली चेव । मुद्दापञ्चकमेय कायव्वं सव्वकालच्चं ॥१९॥ किं चिंतामणिकामघेणुकप्पदुमसुंदर
नवनिहिचउदसरयणपवरचलित्तणुसहयरु । जा मुणिवइसिरिसूरिविजगोयमसुपइट्टिय
भुवणत्तय अक्खलियमहप्प निट्ठियकम्मट्ठय ॥२०॥
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