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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परिशिष्ट २ श्रीइन्द्रनन्दिविरचितं श्रीपद्मावतीपूजनम् । ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय ह्रींपद्मावतीसहिताय धरणोरगेन्द्रसहिताय सर्वोपसर्गविनाशकाय परविद्योच्छेदकाय परमन्त्रविनाशनाय परदोषनिर्दलनाय आकाशान् बन्ध बन्ध, राक्षसान् बन्ध बन्ध, पातालान् बन्ध बन्ध, देवान् बन्ध बन्ध, दैत्यान् बन्ध बन्ध, गणान् बन्ध बन्ध, उच्चिष्टान् बन्ध बन्ध, कमलान् बन्ध बन्ध, चण्डालसहान् बन्ध बन्ध, क्षेत्रपालान् बन्ध बन्ध, ग्रहान् बन्ध बन्ध, यक्षान् बन्ध बन्ध, राक्षसान् बन्ध बन्ध, शाकिनीः बन्ध बन्ध, याकिनीः बन्ध बन्ध, डाकिनीः बन्ध बन्ध, ग्रहभुक्तकान् बन्ध बन्ध, दिव्ययोगिनीः बन्ध बन्ध, खेचरीः बन्ध बन्ध, भूचरीः बन्ध बन्ध, नाथान् बन्ध बन्ध, वर्णराक्षासान् बन्ध बन्ध, कोटिकान्तान् बन्ध बन्ध, पुद्गलग्रहान् बन्ध बन्ध, आकाशदेवीः बन्ध बन्ध, जलदेवीः बन्ध बन्ध, स्थलदेवीः बन्ध बन्ध, गोत्रदेवीः बन्ध बन्ध, पकाहिकं बन्ध बन्ध, द्वयाहिकं बन्ध बन्ध, नित्यज्वरं बन्ध बन्ध, तृतीयज्वरं बन्ध बन्ध, सर्वज्वरं, वेलाज्वरं, मध्याह्नज्वरं, वात- पैत्तिक - श्लेष्मिक-सान्निपातिक - सर्वदेवकृत - मानवकृत- मन्त्रकृतं कार्मणं उच्छेदय, विस्फोटकान् सर्वदोषान् सर्वभूतान् हन हन, दह दह, पच पच, भस्मीकुरु कुरु स्वाहा । पतन्मालामन्त्रः ॥ अथ गुरुपादुकाकारपर्यन्तः पूजाक्रमः । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमं भूमिशुद्धि: अथ मन्त्र स्थापन पूर्वकं आत्मनः सकलीकरणं कार्यम् । ॐ अमृते ! अमृतोद्भवे ! अमृतवर्षिणी अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा । वार १०८ अरजे ! विरजे ! अशुद्धविशोधिनी मां शोधय शोधय For Private And Personal Use Only दिक्कलशमन्त्रः । स्वाहा । वार १०८ विदिशि दिक्कलशमन्त्रः ।
SR No.020681
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK V Abhyankar, Sarabhai Manilal Nawab
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1937
Total Pages307
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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