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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शावर तन्त्र शास्त्र | १०५ पृथिवी थांभौ त्रिपुरामाया थांभौ तिन्हम त्रिपुरसुन्दरी की शरण जौं अमुका के विष हरय परो वेगि देइ ।" टिप्पणी उक्त मन्त्र में जहाँ 'अमुका के' शब्द आया है, वहाँ शत्रु के नाम का उच्चारण करना चाहिए। शत्रु के ऊपर शैतान (प्रेत) चढ़ाने का मन्त्र शत्रु के ऊपर प्रेत (शंतान) चढ़ाने के लिए निम्नलिखित मन्त्र का. साधन करना चाहिएमन्त्र - "अल्प गुरु अल्प रहमान । उसकी छाती चढ़ शैतान । उसकी छाती न चढ़ तौ मा बहिन की सेज पै पग धरै अली की दुहाई।" टिप्पणी उक्त मन्त्र में जहाँ जहाँ 'उसकी' शब्द आया है, वहाँ-वहाँ शत्रु के नाम का उच्चारण करना चाहिए। साधन-विधि किसी भी शुक्रवार की रात्रि से इस मन्त्र का जप आरम्भ करना चाहिए। सर्व प्रथम फर्श के ऊपर मिट्टी से चौका लगायें। फिर उसके ऊपर उत्तर की ओर तिल तथा तेल का दीपक धरें, तदुपरान्त स्वयं दक्षिण की ओर मुह करके बैठे तथा सफेद फूल एवं रेवड़ी समीप रखकर, लोबान की धूप देते हुए १७००० की संख्या में उक्त मन्त्र का जप करें। जप पूरा हो जाने पर रेवड़ियाँ किसी क्वारे लड़के को देदें। इस विधि के पूर्ण हो जाने पर साधक को रात्रि में सोते समय वर प्राप्त होता है तथा मन्त्र सिद्ध हो जाता है। परन्तु मन्त्र की सिद्धि बनाये रखने के लिए इसका नित्य १०८ की संख्या में जप करते रहना चाहिए। प्रयोग-विधि मन्त्र के सिद्ध हो जाने के बाद आवश्यकता के समय, रात्रि में इस मन्त्र का १००० को संख्या में जप करें तथा जप की समाप्ति पर तीन बार अली की दुहाई दें अर्थात् "या अली, या अली, या अली" का जोर से उच्चारण करें। मन्त्र-जप के समय शत्रु का ध्यान करना तथा मन्त्र में उसकी के स्थान पर शत्र के नाम का उच्चारण करते रहना आवश्यक है। For Private And Personal Use Only
SR No.020671
Book TitleShavar Tantra Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Dikshit
PublisherDeep Publications
Publication Year1994
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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