SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्पादकीय सत्यशासन-परीक्षाका प्रस्तुत संस्करण तैयार करनेमें पुण्यश्लोक पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यको स्मृति पदे-पदे प्रेरित और प्रबुद्ध करती रही। उनके जीते जो कभी मैं दर्शनशास्त्रपर अपनी लेखनी चलानेके लिए राजी न हुआ । जब भी वे किसी दार्शनिक ग्रन्थपर काम करनेको कहते तो मैं उत्तर देता, 'दर्शनशास्त्रपर काम करनेवाले आप लोग बहुत हैं, मैं तो साहित्यपर काम करूंगा।' और उनके जानेके बाद पहले-पहल मेरी लेखनी दर्शनपर ही चली। जीवनके अन्तिम दिनोंमें महेन्द्रकुमारजी हरिभद्रके षड्दर्शनसमुच्चयका सम्पादन कर रहे थे। दस वर्ष पहले प्रारम्भ किया काम हम दोनोंने मिलकर कुछ ही महीनोंमें पूरा कर लिया था। उसी प्रसंगमें मैं उनके निकटतम सम्पर्क में आया। और उस सम्पर्कके प्रतिफल मुझे यह दृष्टि प्राप्त हुई कि सत्यशासन-परीक्षाके सम्पादनका यह कार्य सम्पन्न कर सका । सत्यशासन-परीक्षाके सम्पादनमें अनेक विद्वानों एवं मित्रोंका सहयोग तथा शुभकामनाएं प्राप्त रही हैं। डॉ. आ. ने. उपाध्ये और डॉ० हीरालाल जैनकी निरन्तर प्रेरणा न रही होती तो कदाचित इतनी जल्दी सम्पादन-कार्य पुरा न हो पाता। पं० दलसूखभाई मालवणिया तथा पं० दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य में तो मैं पं० महेन्द्रकमारजीके साथ खोया स्नेह प्रेरणा और साहाय्य खोजता-पाता रहा। श्री धर्मपाल शेट्टी मूडबिद्रीने कन्नड लिपिकी दोनों प्रतियाँ उपलब्ध करानेमें तथा पं० देवकुमार जैन मूडबिद्रीने उनके पाठान्तर लेनेमें सहायता की। पं० नेमिचन्द्रजी शास्त्रीके प्रयत्नसे जैन सिद्धान्त भवन, आराको प्रति प्राप्त हुई । इन सबके प्रति कृतज्ञ हूँ। सम्पादनकालमें श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम, बनारसके पुस्तकालयका मैंने पूरापूरा उपयोग किया है। अतएव उसके अधिकारियोंके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना अपना कर्तव्य समझता हूँ। पं० महेन्द्रकुमारजीके ज्येष्ठ पत्र प्रिय पद्यकमार जैनने पर्व स्नेहवश पण्डितजीकी प्रतिलिपिसे सत्यशासन-परीक्षाकी प्रतिलिपि कर लेने दी, प्रिय भागचन्द्र जैन एम. ए., साहित्याचार्यने अपना अमूल्य समय देकर सह्योग ही नहीं किया, प्रत्युत शीघ्र कार्य पूरा करनेमें हाथ भी बटाया। प्रिय लालचन्द्र जैनने प्रतिलिपि करनेमें तथा अन्य जिन मित्रोंने जाने-अनजाने प्रेरणा दी, उन सबके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। पं० हुकम चन्दजी न्यायतीर्थ तथा श्रद्धेया बहन काशीदेवीने मुझे इस योग्य बनाने में सदासे सब कुछ किया, उनका किन शब्दोंमें आभार मानूं ।' वैशाली प्राकृत जैन विद्यापीठके वर्तमान डायरेक्टर डॉ. नथमल टाटियाने अपने व्यस्त समयमें भी सत्यशासन-परोक्षाका अंगरेजीमें विस्तृत परिचय लिखनेका अनुग्रह किया, इसके लिए हृदयसे कृतज्ञ हूँ। भारतीय ज्ञानपीठके मान्य अधिकारियोंका आभार मानना कैसे भूल सकता हूँ जिन्होंने पुस्तकको सुन्दर रूपमें प्रकाशित कर दिया। मेरी इच्छा थी कि प्रस्तावना सत्यशासन-परीक्षाके त्रुटित अंशोंपर भी विद्यानन्दिके अन्य ग्रन्थोंके साक्ष्यमें प्रकाश डालूँ तथा विद्यानन्दिका समग्र अध्ययन प्रस्तुत करूँ, किन्तु कई कारणोंसे वह न हो सका । कदाचित् यह पी-एच. डी. का विषय बनता तो कुछ और अधिक हो पाता। पुस्तकके रूपमें यह मेरी पहली कृति है, इसलिए सुझाव और शिकायत दोनोंका ही स्वागत करूँगा। काशी दिसम्बर १९६३ ow For Private And Personal Use Only
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy