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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा विषय ६९ अतीतादि भेदथी कालना पण त्रण भेदो थई शके छे वो ते __अहीं केम बताव्या नहिं ? ए शङ्कानुं समाधान । १९४ ६९ समयथी लईने शीर्षप्रहेलिका पर्यन्त कालवें स्वरूप १९४ ६९ धर्मास्तिकायादि पांच अजीवमां कया कया भावो होय ? तेनुं स्वरूप १९६ ६९ कर्मस्कन्धाश्रित औपशमिकादि भावो अजीवोने पण संभवे छे तो ते कहेवा जोइए ? ए बाबतनो निर्णय ७० प्रत्येक गुणस्थानमां औपशमिकादि पांच भावोमांथी कया कया भावो होय ? तेनुं स्वरूप ७० क्षायोपशमिक, औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, पारिणामिक अने सान्निपातिक भावना उत्तरभेदो जेटला जे गुणस्थानमा होय? तेनुं स्वरूप ७० उपरोक्त अर्थने प्रतिपादन करनारी सङ्ग्रह गाथाओ पञ्चम सङ्ख्याधिकार. ७१ सङ्ख्यातना त्रण, असङ्ख्यातना नव अने अनन्तना नव मळी संख्याना एकवीस भेदोर्नु कथन १९९ ७२ जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्टसङ्ख्यात तथा पल्य(पाला) अने परिधिनुं स्वरूप ७३ चार पल्योनां (पालानां) नाम तेनी उंडाइ, वेदिका वगेरेनु स्वरूप ७४-७७ पल्योने (पालाओने ) भरवा अने खाली करवाथी केवी रीते ___उत्कृष्टसङ्ख्यातुं थाय ? तेनुं सविस्तर स्वरूप २०२-२०६ ७८-७९ नवप्रकारना असङ्ख्यातनुं अने नवप्रकारना अनन्तनुं स्वरूप २०७ ७९ जघन्यसङ्ख्यातादि संख्याना एकवीस भेदोनी स्थापना २०८ . ८० अनुयोगद्वारसूत्रना अभिप्राय प्रमाणे उपरोक्त भेदोनुं कथन अने ते सूत्रनो पाठ २०९ ८०-८६ मतान्तरथी असङ्ख्यात अने अनन्तनुं सविस्तर स्वरूप २११-२१३ ८६ प्रस्तुत प्रकरणनी समाप्ति ग्रन्थकारनी प्रशस्ति प्रथम परिशिष्ट द्वितीय परिशिष्ट तृतीय परिशिष्ट चतुर्थ परिशिष्ट पंचम परिशिष्ट षष्ठ परिशिष्ट २०१ २१३ २ ه م م ه م م For Private and Personal Use Only
SR No.020663
Book TitleSatikachatvar Karmgrantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1934
Total Pages286
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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