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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा विषय ५१ गोत्रकर्मना उच्चगोत्र अने नीचगोत्र ए बे भेदोनुं दृष्टान्तद्वारा स्वरूप ___अने अन्तरायकर्मना दानान्तराय आदि पांच भेदो, खरूप ५२ अन्तरायकर्मनुं दृष्टान्तद्वारा स्वरूप ५३ ज्ञानावरण अने दर्शनावरणकर्मना बन्धहेतुओ ५४ सातावेदनीय अने असातावेदनीयकर्मना बन्धनां कारणो ५५ दर्शनमोहनीयकर्मना बन्धनां कारणो ५६ कषाय अने नोकषायरूप बे प्रकारना चारित्रमोहनीय कर्म अने नरकायुकर्मना बन्धहेतुओ ५७ तिर्यगायुकर्म अने मनुष्यायुकर्मना बन्धनां कारणो ५८ देवायु अने शुभ-अशुभनामकर्मना बन्धहेतुओ ५९ उच्च-नीचगोत्रकर्मना बन्धहेतुओ ६० अन्तरायकर्मना बन्धहेतुओ तथा ग्रन्थनो उपसंहार ग्रन्थकारनी प्रशस्ति. कर्मस्तवनामक बीजा कर्मग्रन्थनी विषयसूची। गाथा विषय १ मङ्गलाचरण आदि बन्ध, उदय, उदीरणा अने सत्तार्नु लक्षण २ चौद गुणस्थानना नामो 'गुणवान' शब्दनी व्याख्या मिथ्यादृष्टिगुणस्थाननुं स्वरूप मिध्यादृष्टिने गुणवाननो संभव केम होइ शके ? ए शक्कार्नु समाधान जो गुणस्थान होय तो तेने मिथ्यादृष्टि केम कही शकाय? ए शङ्कानुं समाधान सास्वादनसम्यग्दृष्टिगुणस्थाननुं अने प्रन्धिभेदन खरूप मिश्रगुणस्थाननुं अने ऋणपुञ्जनुं स्वरूप अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थाननुं स्वरूप, तेने लगता आठ भङ्गो अने ए भङ्गोची स्थापना देशविरसगुणस्थानमुं स्वरूप For Private and Personal Use Only
SR No.020663
Book TitleSatikachatvar Karmgrantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1934
Total Pages286
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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