SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। प्रथम अध्याय || पान ७९ ॥ मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिबादरपर्यंतनिका अर सूक्ष्म सांपरायीनिका अर कषायरहितनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है ॥ ज्ञानके अनुवादकरि मतिअज्ञान श्रुतअज्ञानवालेनिका मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टिवाले निका गुणस्थानवत् क्षेत्र है | विभंगज्ञानीनिका मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टीनिका लोकका असंख्यातवा भाग है । मति श्रुत-अवधिज्ञानीनिका असंयत सम्यग्दृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंतनिका अर मन:पर्ययज्ञानीनिका प्रमत्तसंयत आदि क्षीणकषायपर्यंतनिका अर केवलज्ञानी अयोगीनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है ॥ संयम के अनुवादकरि सामायिक च्छेदोपस्थापनशुद्धि संयतनिका च्यारि गुणस्थाननिका अर परिहारविशुद्धिसंयत प्रमत्त अप्रमत्तनिका अर सूक्ष्मसांपराय शुद्धसंयतनिका अर यथाख्यात विहारशुद्धसंयतका च्यारि गुणस्थाननिका अर संयतासंयतका अर असंयतके च्यारि गुणस्थाननिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है | दर्शन के अनुवादकरि चक्षुर्दर्शनवालेनिका मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंतनिका लोकका असंख्यातवा भाग है | अचक्षुर्दर्शनवालेनिका मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंतनिका गुणस्थानवत् For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy