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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ६८२ ॥ SAPNAASPARSAFARRIAGIPANAGAPrakapRASAPANASOPR षह सहने । इहां संवरका प्रकरण है, तातें तिसका विशेषण मार्ग कीया है। मार्ग संवर है, तातें च्युत न होनेके अर्थि बहुरि कर्मनिर्जराके अर्थि परीषह सहने कहै हैं । कष्ट आये मार्गत चिगै नाही, ताकी परीषह सहना साधन है । क्षुधा तृष्णा आदि बडे बडे कष्ट सहै तब भगवानका भाष्या | मार्गरौं न छूटते सतें तैसें ते तिस मार्ग प्रवर्तते कर्मका आवनेका द्वार जो आश्रय ताका संवर करते | संते आप उद्यमकरि पचाया जो कर्मका फल ता• भोगवते संते अनुक्रम निर्जरे है कर्म जिनके ते महामुनि मोक्ष... प्राप्त होय हैं। आगें परीषहनिमित्त संज्ञासूत्र कहै हैं- . ॥क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीच-निषद्याशय्याक्रोशवध याचनालाभरोगतणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानादर्शनानि ॥ ९॥ ___याका अर्थ-क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, | आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कारपुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान, अदर्शन ए| बाईस परीषह हैं । ए क्षुधाआदिक हैं ते वेदना पीडाका विशेष हैं ते बाईस हैं इनका सहना मोक्षके अर्थिनळू करना । सो कैसे सोही कहै हैं । ऐसें महामुनिकें क्षुधाका जीतना कहिये । कैसे हैं ? | प्रथम तो भिक्षावृत्तिकरि परके घर आहार ले हैं, तातें तो भिक्षु ऐसा नाम है जिनका। बहुरि निर्दोष SARIPARIKSHOPRAKAFOPANSARAPARASHAROPANASOPAAPPA NEPAL For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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