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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra beats www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता || प्रथम अध्याय ॥ पान ४७ ।। १ काल, २ आत्मरूप, ३ अर्थ, ४ संबंध, ५ उपकार, ६ गुणिदेश, ७ संसर्ग, शब्द, ऐसै ए आठ हैं। तहां उदाहरण - ' स्याजीवादि वस्तु अस्त्येव ' ऐसा वाक्य है । याका अर्थ कथंचिज्जीवादि वस्तु है सो अस्तिरूपही है । तहां जो काल अस्तित्वका है सोही काल अवशेष अनंतधर्मका एकवस्तुविष है, ऐसें तौ कालकर अभेदवृत्ति है । बहुरि जोही वस्तुका अस्तित्वकै तगुणपणां आत्मरूप है सोही अनंतगुणनिका भी है । ऐसें आत्मरूपकरि अभेदवृत्ति है । बहुरि जोही द्रव्यनाम आधार अस्तित्वका है सोही अन्यपर्यायनिका है । ऐसें अर्थकरि अभेदवृत्ति है । बहुरि जोही कथंचित् तादात्म्यस्वरूप अभेद भावसंबंध अस्तित्वका है सोही समस्त विशेषनिका है ऐसे संबंधकरि अभेदवृत्ति है । बहुरि जोही आपमें अनुरक्त करनां उपकार अस्तित्वका है सोही समस्त अन्यगुणनिका है । ऐसे उपकारकरि अभेदवृत्ति है । बहुरि जोही गुणीका देश अस्तित्वका है सोही अन्य गुणनिका है। ऐसे गुणिदेशकरि अभेदवृत्ति है । बहुरि जोही एकवस्तुत्वस्वरूपकरि अस्तित्वका संसर्ग है सोही अन्य समस्तधर्मनिका है ऐसें संसर्गकरि अभेदवृत्ति है । बहुरि जोही अस्ति ऐसा शब्द अस्तित्वधर्मस्वरूप वस्तूका वाचक है सोही बाकी के अशेषधर्मस्वरूप वस्तूका वाचक है ऐसे शब्दकरि अभेदवृत्ति है । ऐसें पर्यायार्थिक गौण होतैं द्रव्यार्थिकपणांके प्रधानपणांत प्राप्त होय है । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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