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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ अष्टम अध्याय ॥ पान ६२२ ॥ GAROOPERATOPARATIOPORNSARRIAGAproopnNROPEACapna वसनाम है । बहुरि जाके उदयतें एकेन्द्रियविर्षे उपजै, सो स्थावरनाम है । बहुरि जाके उदयतें अन्यकू प्यारी लागै, सो सुभगनाम है । बहुरि जाके उदयतें रूप आदि सुंदरगुण होय, तौ अन्यकुं प्रीति न उपजै, सो दुर्भगनाम है । बहुरि जाके उदयतें स्वर मनोज्ञ होय, सो सुस्वरनाम है। यातें विपरीति बुरा खर होय सो दुःस्वरनाम है ॥ बहुरि जाके उदयतें शरीर रमणीक सुन्दर होय, सो शुभनाम है । यातें विपरीति असुंदर होय, सो अशुभनाम है । बहुरि जाके उदयतें सूक्ष्मशरीर निपजै, सो सूक्ष्मनाम है । बहुरि जाके उदय अन्यकू बाधा करै रोकै ऐसा शरीर उपजै, सो बादरनाम है। बहुरि जाके उदयतें आहार आदि पर्याप्ति पूर्ण करै, सो पर्याप्तिनाम है। सो पर्याप्ति छह प्रकार है आहार, शरीर, इंद्रिय, श्वासोस्वास, भाषा, मन ऐसें । बहुरि जाके उदयतें छह पर्याप्ति पूर्ण न करै ऐसा अपर्याप्तिनाम है । बहुरि जाके उदयतें शरीरके अंगोपांग दृढ होय, सो स्थिरनाम है। याते विपरीति अस्थिरनाम | है। बहुरि जाके उदयतें प्रभासहित शरीर होय पैला सहारी न सकै, सो आदेयनाम है। प्रभारहित शरीर होय, सो अनादेयनाम है । बहुरि जाके उदयतें पवित्रगुण लोकमें प्रगट होय, सो यशःकी| तिनाम है । बहुरि जाके उदयः छते गुणभी प्रगट न होय सकै अवगुण प्रगट होय सो अयशः. erosataranakisatasexinbisextoberties For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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