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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५८० ॥ आगे उपभोगपरिभोगपरिमाणके अतीचार कहै हैं - ॥सचित्तसम्बन्धसम्मिश्राभिषवदुष्पक्वाहाराः ॥ ३५॥ याका अर्थ-- सचित्तवस्तु, सचित्तकरि मिल्या वस्तु, सचित्तके संबंधरूप वस्तु, द्रव्यरूपवस्तु, विना नीका पकी वस्तु इनका आहार करना ए पांच उपभोगपरिभोगपरिमाणके अतीचार हैं। तहां जीवकरि सहित होय सो सचित्त है । तिस सचित्तकरि भिड्या होय सो सचित्तसंबंध है। सचित्तसूं मिल्या होय सो सम्मिश्र है । इनविर्षे प्रवृत्ति प्रमादतें तथा अतिभूखते तथा तीव्ररागते होय । बहुरि द्रव्यरूप रस तथा वृष्य कहिये पुष्टिकरि वस्तु सो अभिषव है। बहुरि भलेप्रकार पक्या नाहीं ऐसी वस्तु । इन पांच वस्तूनिका आहार करना ए पांच अतीचार उपभोगपरिभोगपरिमाणके हैं ॥ आगें अतिथिसंविभागके अतीचार कहै हैं-- ॥सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः ॥ ३६॥ याका अर्थ-- सचिनविौं धरणा, सचित्तते ढाकना, परका नाम करना, मात्तर्य करना | काल उल्लंघना ए पांच अतीचार अतिथिसंविभागके हैं । तहां सचित्त कहिये जीवसहित कमलका । पत्र पातलि आदिक तिनविर्षे निक्षेप कहिये मुनिनिळू देनेका आहारआदिका धरना । बहुरि । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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