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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ षष्ठ अध्याय ॥ पान ५२८ ॥
॥ सवैया २३॥ आश्रवभाव मुनीन्द्र कहे नय दोय विचार यथाविधि नीकी । शुद्धनयातम आश्रव एक चिदातम भावन रति जीकी ॥ सोउ अनेक विकारमयी लखि भेद अशुद्धनयाश्रित टीकी । इन्द्रिय अव्रत और कषाय क्रिया बहु जानि तजौ जु अलीकी ॥१॥ ऐसें तत्वार्थका है अधिगम जाकरि ऐसा जो मोक्षशास्र, ताविर्षे
छठा अध्याय सम्पूर्ण भया ॥६॥
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