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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ षष्ठ अध्याय ॥ पान ५१५ ॥ जाय ऐसे भुलावा देणां सो कुटिलता है । बहुरि विसंवाद कहिये अन्यकू अन्यथा प्रवर्तावना । इहां | कोई कहै, योगनिकी वक्रता सोही अन्यथा प्रवर्तन है इनमें अर्थभेद दीखे नाहीं । ताकू कहिये, जो, यह तो सत्य है, परंतु अर्थभेदभी है। आपकी अपेक्षा तो योगवक्रता है । विसंवाद परकी अपेक्षा है । पैला कोई अपना कल्याण करनहारी जो भली स्वर्गमोक्षके उपायकी क्रिया ताविर्षे प्रवर्तता होय , ताकू भुलाय आप तिसकी क्रियाकू मन वचन कायतें अन्यथा कहै , ताका विसंवाद करै, निंदा करें; ऐसें कहै, जो ‘यह क्रिया मति करै बुरी है हम कहें जैसी करि' ऐसे ठगने के अर्थि करै सो विसंवादन है । ए दोऊ अशुभनामकर्मके आश्रवके कारण जानने ॥ ____ इहां सूत्रमें चशब्द है ताकरि मिथ्यादर्शन, अदेखसाभाव , चुगली खाणी, चलायमानचित्तपणां, हीनाधिक मान ताखडी तौला करना, परकी निंदा करणी, आपकी प्रशंसा करनी इत्यादिक समुच्चय करना । इहां विशेष और लेणे । खोटे सुवर्ण मणि आदि बनाय तिससारिखे बनाय ठगना, झूठी साखि भरना, परके अंग उपांग बिगाडने, वर्ण रस गंध स्पर्शका अन्यथा प्रवर्तन करना, यंत्र पींजरे बणावने, अन्यद्रव्यका अन्य द्रव्यविर्षे संबंधकरि कपटकी प्रचुरता करणी, झूठ बोलना, चोरी करना, वणा आरंभ करना, परिग्रहकी चाह तीव्र राखनी, परके ठगनेकू उज्वल वेष करना, For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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