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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिदिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ३१ ॥ समाधान-- जो, इहां प्रयोजनविशेष है सोही कहिये है। इहां प्रकरण मोक्षका है, तातें मोक्ष तौ | अवश्य कह्या ही चाहिये । बहुरि मोक्ष है सो संसारपूर्वक है । संसारके प्रधानकारण आस्रव बंध हैं, सो कहनांही । बहुरि मोक्षके प्रधानहेतु संवरनिर्जरा हैं, तेभी कहनाही । यातें प्रधानकारण कार्यके अपेक्षा इनिकू जुदे कहे । सामान्यमें अंतर्भूत है तोऊ विशेषका कहना प्रयोजन आश्रय है । जैसे सेनावि क्षत्रिय भेले होय तब कहै — सर्व आये तथा फणाणे वडे सुभट हे तेभी आये ' ऐसे इहांभी जाननां ॥ बहुरि कोई तर्के करै, सूत्रविर्षे तत्त्वशद तौ भाववाची एकवचन नपुंसकलिंग है । बहुरि जीवादिक द्रव्यवाचक बहुवचन पुरुषलिंग धन्य सो यहु कैसे ? ताका उत्तर-जो, द्रव्य भाव तो अभेदरूप है, तातें दोष नाही । बहुरि लिंग संख्या तत्त्वशद भाववाची है, तहां एकवचनही होय है, तथा नपुंसकलिंगी है, तातें अपनी लिंगसंख्याकौं छोडै नांही, तातें दोष नाही । ऐसे ही आदिसूत्रविर्षे जाननां ॥ इहां विशेष कहिये हैं- मोक्षमार्गके प्रकरणमें श्रद्धानके विषय सातही तत्त्व हैं। अन्यवादी | केई तत्त्व एकही कहै हैं । केई प्रकृतिपुरुष दोय कही इनिके पचीस भेद कहै हैं । केई द्रव्यगुणादि | सप्त पदार्थ कहै । केई पृथ्वी आदि पंच तत्व कहै हैं । केई प्रमाणप्रमेय आदि षोडश पदार्थ कहै हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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