SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 480
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४६२ ॥ का दूध का दूध तथा घृतविषै सचिक्कणगुण घाटि वाधिकार प्रवर्तें है, तथा पांशु कहिये धूली कणिका कहिये वालु रेत शर्करा कहिये काकराकी जिमी इत्यादिविषै रूक्षगुण घाटि वाधि है; तैसेंही परमाणुनिविषै स्निग्धरूक्षगुणकी घाटि वाधि प्रवृत्ति है, ऐसा अनुमान है । इहां एक दोय गुण कहने गुणनिके अविभागपरिच्छेद जानने ॥ आगें faresक्षगुण है निमित्त जाकूं ऐसा बंध है, सो अविशेषकर होता होयगा, ऐसा प्रसंग होतें जिनके बंध नाहीं होय है, तिनका निषेधकं सूत्र कहै हैं ॥ न जघन्यगुणानाम् ॥ ३४ ॥ याका अर्थ - जे जघन्यगुण परमाणु हैं, तिनकें बंध नाहीं हो है । जघन्य कहिये घाटिं घाट जानें गुण कहिये गुणके अविभागपरिच्छेद होय सो जघन्यगुण कहिये । सो जघन्यगुणकै बंध नाहीं है । सोही कहिये है, जो, एकगुण स्निग्ध होय तिस परमाणुकै एकगुण स्निग्धपरमाणुकरि तथा दोयगुण स्निग्धकरि तथा संख्यात असंख्यात अनंतगुण स्निग्धकर बंध नाहीं होय है । ही एकगुण स्निग्ध एकगुण रूक्षपरमाणुकरि तथा दोय आदि संख्यात असंख्यात अनंतगुण रूक्षपरमाणुनि करि बंध नाही हो है । ऐसैंही एकगुण रूक्षकैभी बंधका अभाव जानना । इहां कोई For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy