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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३५४ ॥ GAPPRExaspaSIGIRPORATOPARGNOOPRICOSPIRONGOPARNAPURN | तेता काल एक अद्धापल्यका है। त्रिलोकसारमैं ऐसा कह्या है, उद्धारपल्यके रोमके एक एकके असंख्यातवर्षके समयमात्र खंड करने । ऐसे दस कोडाकोडी अद्भापल्यनिका एक अद्धासागर कहिये । बहुरि दशकोडाकोडी अद्धासागरका एक अवसर्पिणी काल कहिये । तेताही उत्सर्पिणीकाल कहिये । इस अदापल्यनिकरि नारक तिर्यंच देव मनुष्यनिका कर्मकी स्थिति तथा भवकी स्थिति तथा कायकी स्थिति जानिये । बहुरि अद्धापल्यका जेते अर्द्धछेद होय तिनि... एक एक | वखेरि एक एकपरि अद्धापल्य स्थापि, परस्पर गुणिये । तहां जो राशि निपजे ताईं आकाशके प्रदेशनिकी पंक्तिरूप करिये सो सूच्यंगुल है । बहुरि सूच्यंगुलकू सूच्यंगुलकरि गुणिये तब प्रतरागुल कहिये । बहुरि प्रतरांगुलकू सून्यंगुलझं गुणिये तब घनांगुल होय । बहुरि असंख्यात वर्षका जेता | समय होय तेता खंड अद्धापल्यका करिये । तिनिमेंसूं एक खंड लेय ताकू वखेरि एक एक स्थापि | तिनि ऊपरि एक एक घनांगुल मांडिये । तिनिळू परस्पर गुणिये तब जो राशि निपजै ताकू जगच्छ्रेणी कहिये । भावार्थ-सात राजुका एकप्रदेश पंक्तिरूप डोराकू जगत्श्रेणी कहिये है । बहुरि जगत् श्रेणीकू जगत्श्रेणिकरि गुणे जगत्पतर होय है । वहुरि जगत्प्रतरकू जगत्श्रेणीकरि गुणें जघद्धन हो है याकू || लोक कहिये, सात राजू लांबा सात राजू चौडा सात राजू ऊंचा क्षेत्रका प्रदेशका नाम लोक.. For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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