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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३२५ ॥ आगें पूछे है कि, अन्यभृमिनिकी कहा अवस्था है ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं-- ॥ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिताः ॥ २८॥ याका अर्ध- तिनि भरत ऐरावत क्षेत्र सिवाय रहे जे क्षेत्र ते ‘अवस्थिताः' कहिये जैसे हैं तैसेही रहै हैं ॥ तहां उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल नांही पलटे है ॥ आगें पूछे है, तहांके मनुष्यनिकी आयु समानही है कि किछ विशेष है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं ॥ एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षकदेवकुरवकाः ॥ २९॥ याका अर्थ- हैमवतक कहिये हैमवतक्षेत्रके मनुष्य तिनिकी आयु एक पल्यकी है । इसकूँ जघन्यभोगभूमिका क्षेत्र कहिये । बहुरि हरिवपके मनुष्यनिकी आयु दोय पल्यकी है । इसकू मध्यभोगभमिका क्षेत्र कहिये। बहरि देवकरुभोगभमिका मनुष्यनिकी आय तीन पल्यकी है। इसकू उत्तमभोगभूमि कहिये। तहां पांच मेरुसंबंधी पांच हैमवतक्षेत्रनिविर्षे सुषमदुःषमा सदा अवस्थित है। तहांके मनुष्यनिका आयु एक पल्यका अरु काय दोय हजार धनुष्यनिका है। बहुरि एकदिनके अंतररौं आहार करै हैं । बहुरि नीलकमलसारिखा शरीरका वर्ण है । बहुरि पांच | हरिक्षेत्रनिविौं सुषमा सदा अवस्थित है। तहांके मनुष्यनिकी आयु दोय पल्यकी है । चारि हजार PARAPARACINHAPGXFOPARDAFARPARSHERPARACTREPARAMBHARGAPATRA For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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