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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Srastriestaeriessertaterilesanuitsteriasis ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान २९९ ॥ ए सात अधोलोकवि नीचैनिचे तीन वातवलय और आकाशकै आधार पृथ्वी है ॥ इहां रत्नादिशब्दनिका द्वंद्वसमासकरि वृत्ति है तिनिकै प्रभाशब्द न्यारा न्यारा जोडनां । बहुरि साहचर्यतें तैसाही नाम है। ताते रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालकाप्रभा पंकप्रभा धमप्रभा तमःप्रभा | महातमःप्रभा ऐसे नाम सिद्ध भये हैं । तहां भूमिका ग्रहण तो आधारके जनावनेके अर्थि है । जैसे स्वर्गके पटलनिके जुदे जुदे विमान हैं तहां भूमिका आश्रय नाही, तैसें इहां नांही है । नारकीनिकै आवास भूमीके आश्रय हैं । बहुरि तिनि भूमिनिके आलंबनके निणयकै अर्थि घनांबुवातादि शब्दका ग्रहण है। घन अंबु वात आकाश ए हैं प्रतिष्ठा कहिये | आधार जिनिका ते ऐसे हैं । ए भूमि तौ घनोदधि वातवलयकै आधार है । बहुरि घनोदधि वातवलय घनवातवलयकै आधार है । बहुरि घनवातवलय तनुवातवलयकै आधार है । तनुवातवलय आकाशका आधार है । बहुरि आकाश आपहीकै आधार है । आकाश सर्वतें वडा है, सो अन्य आधारकी कल्पना नाही । ए तिनंही वातवलय वीस वीस हजार योजन न्यारे न्यारे मोटे हैं । सप्त शडका ग्रहण अन्यसंख्याके निराकरणकै अर्थि है, सातही हैं, आठ नांही नव नांही । बहुरि अधोऽधो शब्द है सो तिर्यक् फैली बात तथा ऊर्ध्वके निषेधकै अर्थि है ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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