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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir AFARPATRPANARDANAPANESPONGARPRASNAPROLAPURN ॥ सर्वार्थासद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृतः ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २८० ॥ पोतनिकैही गर्भजन्म है । अथवा इनिके गर्भही जन्म है । अन्य नाही । बहुरि देव नारकीनिकही उपपाद जन्म है । अथवा इनिकै उपपादजन्मही है । अन्य नाही । बहुरि अवशेष जीवनिकैही सम्मूर्च्छन जन्म है । अथवा इनिकै संमूर्च्छन जन्मही है अन्य नांही । ऐसें दोऊ तरह नियम जाननां ॥ ऐसें पांच सूत्रनिकरि जन्म अरु तिनि जन्मसहित जीवनिका निरूपण कीया ॥ - आगें पूछे है , तिनि संसारी जीवनिकै तीन जन्म कहे तथा अनेक भेदनिसहित नवयोनि कहे । तिनिकै शुभ अशुभ कर्मका उदयकरि निपजाये बहुरि बंधके फलके भोगनेके आधार शरीर कौन कौन हैं ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं-- ॥ औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ॥ ३६॥ ___ याका अर्थ-- औदारिक वैक्रियिक आहारक तेजस कार्मण ए पांच शरीर कर्मफल भोगनेकै आधार हैं ॥ विशिष्टनामकर्म कहिये शरीरनामा नामकर्म ताकै उदयतें भये ऐसे , शीर्यते कहिये गलै शिडै झडै ते शरीर हैं । शरीर नामा नामकर्मकी प्रकृति औदारिकादिक हैं तिनिके उदयतें औदा. रिकादिककी प्रवृत्ति पाईये है । तातें ते पांच नाम हैं । तहां उदार नाम स्थूलका है । बडा दीखे ताकू उदार कहिये सो उदारविर्षे भया होय सो अथवा उदार है प्रयोजन जाका ताकू औदारिक कहिये । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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