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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २७४ ॥ बहुरि सूत्रमैं वा शब्द विकल्पकै अर्थि है । जैसी इच्छा होय तहांही रह जानां सो विकल्प है । जैसे पाणिमुक्तगति करै सो एकसमयही अनाहारक रहै । लांगलिकगति करै सो दोय समयही अनाहारक रहै । गोमूत्रिकागति करै सो तीन समय अनाहाक रहै । आगै चौथा समय आहारकहीका है । जातें ऐसा क्षेत्र नांही जो फेरि मोडा खाय । तहां औदारिक वैक्रियिक आहारक ए तीन शरीर तथा आहार आदि छह पर्याप्तकै योग्य पुद्गलवर्गणाका ग्रहण सो आहार कहिये । जाते यहु आहार नांही सो अनाहारक है । बहुरि कर्मवर्गणाका ग्रहण जेतें कार्मण शरीर है तेतें निरंतर है । तहां उपजनेके क्षेत्रप्रति जो ऋजुगतिही करै तौ आहारकही है । बहुरि विग्रहगतिविर्षे तीन समय अनाहारक रहै है । ऐसें गमनविशेषका निरूपण छह सूत्रनिकरि कीया ॥ आगैं, ऐसे भवांतरनौ गमन करता जो जीव ताकै नवीन शरीरकी उत्पत्तिका प्रकार प्रतिपादनकै अर्थि सूत्र कहै हैं-- ॥ सम्मूर्छनगर्भोपपादा जन्म ॥ ३१ ॥ ___याका अर्थ-- जीव नवीन शरीर धरै है ताके जन्म तीन प्रकार हैं । संमूर्छन गर्भ उपपाद | ऐसें ॥ तहां ऊर्ध्व अधो तिर्यक् ऐसै तीन जे लोक तिनिविर्षे जहां तहां अवयवसहित देह बनि For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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