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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ सवार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २५२ ॥ आगें कहै हैं, जो, ए संसारी जीव हैं ते दोय प्रकार हैं ताका सूत्र - ॥ समनस्कामनस्काः ॥ ११ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याका अर्थ- संसारी जीव हैं ते समनस्क कहिये मनसहित अमनस्क कहिये मनरहित ऐसें दोय प्रकार हैं ॥ तहां मन दोय प्रकार है: द्रव्यमन, भावमन । तहां पुद्गलविपाकी कर्मप्रकृति के उदयकी है अपेक्षा जाकूं ऐसा हृदयस्थानविषै फूले कमलकै आकार सूक्ष्म पुगलका प्रचयरूप तिष्ठे है सो तौ द्रव्यमन है । बहुरि वीर्यांतराय तथा नोइंद्रियावरण नामा ज्ञानावरणीय कर्मके क्षयोपशमकी है अपेक्षा जाकै ऐसा आत्माकै विशुद्धि सो भावमन है । तिस मनकरि सहित होय ते तौ समनस्क हैं । बहुरि जिनिके मन विद्यमान नांही है ते अमनस्क हैं । ऐमैं मनके सद्भाव अभावकरि संसारीनिके दोय भेद हो हैं । इहां समासविषै समनस्कका पूर्वनिपात है, सो पूज्य प्रधान पणांतें है । जातैं समनस्ककै गुणदोषका विचारसहितपणां है, तातें प्रधान 11 आगे फेरि संसारी जीवनिके भेदकी प्राप्तिके अर्थ सूत्र कहै हैं ॥ संसारिणस्त्र सस्थावराः ॥ १२ ॥ याका अर्थ- संसारी जीव हैं ते त्रस हैं तथा स्थावर हैं ऐसे दोय प्रकार हैं । इहां कोई कहै For Private and Personal Use Only BreedBir Br
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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