SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २३३ ॥ कषायके देशघातिस्पर्द्धकनिका उदय होतें बहुरि नोकषाके नवकका यथासंभव उदय होते आत्माकै विरताविरत परिणाम हो है सो क्षायोपशमिक संयमासंयम है। याकू देशविरति भी कहिये। इहां कोई पूछे, स्पर्द्धक कहां ? ताका समाधान-जो, कर्मके परमाणूंनिविर्षे फल देनेकी शक्तिरूप रस है तिनिके अविभागप्रतिच्छेदका समूहकी पंक्ति क्रमरूप वृद्धि तथा हानि ते स्पर्द्धक कहिये हैं । तहां उदयमें आया ओ कर्मपरमानिका एकसमयविर्षे एकसमयप्रवृद्ध, तामें सिद्ध राशिके अनंतवै भाग अभव्यराशि अनंतगुणे परमाणू होय हैं, तिनिवि सर्व जघन्यगुण जामें होय ऐसा एक परमाणू लेणा । ताका अनुभाग• बुद्धिकरि छेदनतें जहां ऐसा छेद होय ताका फेरि दुसरा छेद न होय ऐसें अविभागपरिच्छेद सर्वजीवनितें अनंतगुणां है, ताकी एक राशि कीजिये ताका नाम वर्ग है । बहुरि समान अविभागपरिच्छेदके समूहरूप परमाणूनिके समूहका नाम वर्गणा है । तहां थोरेलूँ थोरे अविभागपरिच्छेदके परमाणूनिका नाम जघन्यवर्ग है । तिसके समान परमाणरूप वर्गके समूहका नाम जघन्यवर्गणा है । बहुरी जघन्यवर्गते एक अविभागपरिच्छेद वधता तामें पाईये ऐसी परमाणूनिके समूहका नाम द्वितीयवर्गणा है । ऐसें जहांताई एक एक अविभागप्रतिच्छेदनिका क्रम लीये जेती वर्गणा होय तितनी वर्गणांनिके समूहका नाम जघन्यस्पर्द्धक है । Mor exiseritsareeriasiseatsaatnisexitsexreritisarita For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy