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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २२२ ॥
॥ नमो वीतरागाय॥
॥ अथ द्वितीयाध्यायका आरंभ कीजिये हैं।
दोहा- उदयज उपशम मिश्र ताज, क्षायिक भाव उघारि ॥
जीवभाव उज्जल कियो, नमू ताहि मद छारि ॥ १ ॥ ऐसें मंगलकरि सर्वार्थसिद्धिटीकाकारका वचन लिखिये हैं। तहां शिष्य पूछ है, हे भगवन् ! सम्यग्दर्शनका विषय भावकरि कहै जे जीवादितत्त्वनिमें आदिविर्षे कह्या जो जीव, ताका स्वतत्त्व कहिये निज यथार्थ असाधारणस्वरूप कहा है ? सो कहिये । ऐसे पूछतें आचार्य सूत्र कहै हैं॥ औपशमिकक्षायिको भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च॥१॥
याका अर्थ- औपशमिक क्षायिक मिश्र औदयिक पारिणामिक ए पांच भाव हैं ते जीवके निजतत्त्व है ॥ तहां आत्मावि कर्मकी निजशक्तिका कारणके वशर्ते अनुभूति कहिये उदय न
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