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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir గులు ఆంగerfoదరు దుండ ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचदजाकृतॉ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १९८ ॥ | भेद है शुद्धद्रव्यनैगम अशुद्धद्रव्यनैगम । बहुरि पर्यायनैगमके तीन भेद, अर्थपर्यायनैगम व्यंजनपर्याय नैगम, अर्थव्यंजनपर्यायनैगम । बहुरि द्रव्यपर्यायनैगमके च्यारि भेद शुद्धद्रव्यार्थपर्यायनैगम, अशुध्दद्रव्यार्थपर्यायनैगम, शुध्दद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम अशुध्दद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम । ऐसै नैगमनयके नव भेद भये । तहां उदाहरण- जो, संग्रहनयका विषय सन्मात्र शुध्दद्रव्य है ताका यहु नैगमनय संकल्प करै है जो सन्मात्र द्रव्य समस्तवस्तु है, ऐसै कहै तहां सत्तौ विशेषण भया तार्ते गौण है । बहुरि द्रव्य विशेष्य भया तातें मुख्य है। यहु शुध्दद्रव्यनैगम है। वहरि जो पर्यायवान् है सो | द्रव्य है, तथा गुणवान है सो द्रव्य है ऐसा व्यवहारनय भेदकरि कहै है । ताका यहु नैगमनय संकल्प करै है । तहां पर्यायवान तथा गुणवान् यहु तो विशेषण भया, तातें गौण है । बहुरि द्रव्य विशेष्य भया तातें मुख्य है । ऐसें अशुद्धद्रव्यनैगमनय भया । बहुरि प्राणीके सुखसंवेदन है सो क्षणध्वंसी है ऐसे क्षणध्वंसी ऐसा तो सत्ताका अर्थपर्याय है सो विशेषण है । बहुरि सुख है सो संवेदनका अर्थपर्याय है सौ विशेष्य भया तातें मुख्य है । तातें यहु अर्थपर्यायनैगम भया । बहुरि | पुरुषविर्षे चैतन्य है सो सत् है इहां सत् नामा व्यंजनपर्याय है सो विशेषण है । बहुरि चैतन्यनामा | व्यंजनपर्याय है सो विशेष्य है तातें मुख्य है । यह व्यंजनपर्याय नैगम है। बहुरि धर्मात्माविर्षे | DABoarteridioxertioreatriorrertexexesss For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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