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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। प्रथम अध्याय ॥ पान २ ॥
जो, इस शिथिलाचारकू कोई बुद्धिकल्पित न कहै । तब तिसके साधनेनिमित्त सूत्ररचना करी । चौरासी सूत्र रचे । तिनिमें श्रीवर्द्धमानस्वामी अर गौतमगणधरका प्रश्नोत्तरका प्रसंग ल्याय शिथि. लाचार पोषणेके हेतु दृष्टांत युक्ति बणाय प्रवृत्ति करी । तिनि सूत्रके आचारांग आदि नाम धरे । तिनिमें केतेइक विपरीत कथन किये । केवली कवलाहार करें। स्त्रीकू मोक्ष होय । स्त्री तीर्थकर भये । परिग्रहसहितकू मोक्ष होय । साधु उपकरण, वस्त्र, पात्र आदि चौदह राखै । तथा रोग ग्लानि आदिकरि पीडित साधु होय तौ मद्यमांससहतका आहार करै तौ दोष नाही, इत्यादि लिख्या । तथा तिनिकी साधक कल्पितकथा बणाय लिखी । एक साधूकौं मोदकका भोजन करताही आत्मनिंदा करी तब केवलज्ञान उपज्या । एक कन्याको उपाश्रयमें बुहारी देतेही केवलज्ञान उपज्या । एक साधु रोगी गुरुको कांधे ले चल्या, आखडता चाल्या, गुरु लाठी कीदई, तब आत्मनिंदा करी ताकू केवलज्ञान उपज्या । तव गुरु वाकै पगां पड्या । मरुदेवीकू हस्तीपरी चढेही केवलज्ञान उपज्या । इत्यादि विरुद्धकथा तथा श्रीवर्द्धमानस्वामी ब्राह्मणीके गर्भमैं आये, तब | इंद्र वहांत काढि सिद्धारथ राजाकी राणीके गर्भमैं थापे । तथा तिनिकू केवल उपजे पीछे गोसाला || | नाम गरुड्याळू दीक्षा दीई, सो वानें तप बहुत कीया, वाकै ज्ञान वध्या, रिद्धि फुरि, तब भगवा- |
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