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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra AGE www.kobatirth.org आगें दूसरा भेदं कहै हैं ।। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता || प्रथम अध्याय ॥ पान १७२ || ऐसा सूत्रमैं ग्रहण है तातें मिथ्यादृष्टीनिकै विभंग अवधि कहिये । बहुरि इनिकै हीनाधिक अवधिका व्याख्यान अन्यशास्त्रनितें जाननां ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् ॥ २२ ॥ याका अर्थ - क्षयोपशम है निमित्त जाकूं ऐसा छह भेदरूप अवधि है सो शेष जे मनुष्य तिर्यंच तिनिकै होय है ॥ तहां अवधिज्ञानावरणकर्मके देशघातिस्पर्द्धकनिका उदय होतें बहुरि सर्वघातिस्पर्द्धकनिका उदय अभाव है लक्षण जाका ऐसा क्षय, बहुरि तेही सर्वघातिस्पर्द्धक उदयकं न प्राप्त भये सत्ता अवस्थारूप उपशम है निमित्त जाकूं सो क्षयोपशमनिमित्त अवधि कहिये । सो शेष जे देवनारकीर्ते अवशेष रहे मनुष्य तिर्यंच तिनिकै होय है । तिनिमेंभी जिनके अवधियोग्य सामर्थ्य होय तिनहीकै होय है । जे असैनी तिर्यंच तथा अपर्याप्तक मनुष्य तिर्यंच इस सामर्थ्यतॆ रहित होय, तिनिकै न होय है । बहुरि संज्ञी पर्याप्तविषैभी सर्वहीकै न होय है केई सम्यग्दर्शनादि निमित्तकर सहित होय । तथा जिनिकै कर्मका उपशम क्षय होय तिनहीकै हो है । इहां कोई पूछे, क्षयोपशमविनां तौ अवधि होय नांही, सूत्रमें क्षयोपशमशब्द ग्रहणका For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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