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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ११९ ॥ GARASPORANAPROXOPOSACARPRECIASPANGACARRADEXPERSPAGEMARPAN सर्व स्तोक अप्रमत्तसंयत है। तिनित संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है। ऐसे अन्यगुणस्थानवाले पंचेंद्रियवत् है । शुक्ललेश्यावालेनिकै सर्वतें स्तोक उपशमश्रेणीवाला है। तिनितें संख्यातगुणां क्षपकश्रेणीवाला है । तिनि संख्यातगुणां सयोगकेवली है । तिनितें संख्यातगुणां अप्रमत्तसंयत है । तिनितें संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । तिनितें असंख्यातगुणां संयतासंयत है। तिनितें असंख्यातगुणां सासादनसम्यग्दृष्टि है । तिनितें असंख्यातगुणां सम्यग्मिथ्यादृष्टि है। तिनितें असंख्यातगुणां मिथ्यादृष्टि है। तिनि” असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है । भव्यके अनुवादकरि भव्यनिके गुणस्थानवत् अल्पबहुत्व है । अभव्यनिके अल्पबहुत्व नाही है ।। सम्यक्त्तके अनुवादकरि क्षायिकसम्यग्दृष्टीनिविर्षे सर्वतें स्तोक च्यारि उपशमश्रेणीवाला है। | अन्य प्रमत्तसंयतनिताई गुणस्थानवत् है । तिनितें संयतासंयत संख्यातगुणां है। तिनितें असंर यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है । क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टि है तिनिविर्षे सर्वतें स्तोक अप्रमत्तसंयत है। तिनितें संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । तिनितें असंख्यातगुणां संयतासंयत है। तिनितें असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है। औपशमिकसम्यग्दृष्टीनिविर्षे सर्वरों स्तोक च्यारि उपशम| श्रेणीवाला है। तिनि” संख्यातगुणां अप्रमत्तसंयत है। तिनित संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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