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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्भिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १०७ ।। लेश्याके अनुवादकरि कृष्ण नील कापोत लेश्यावालेनिविर्षे मिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टिक नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है। एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तेतीम सागर सतरा सागर सात सागर कछु घाटि है । सो नारकी अपेक्षा है । सासादनसम्यग्दृष्टि मम्यमिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा सामान्यवत् है । एकजीव अपेक्षा जघन्य पल्योपमका असंख्यातवा भाग है । अंतर्मुहूर्तभी है । उत्कृष्ट तेतीस सागर सतरा सागर सात मागर है । सो कछु घाटि है । पीतपद्मलेश्याविर्षे मिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट दोय सागर अारा सागर कछु अधिक है । सासादन सम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है । एकजीव अपेक्षा जघन्य पल्यका असंख्यातवा भाग है। अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट दोय सागर अठारा सागर कछु अधिक है । संयतासंयत प्रमत्त अप्रमत्त संयतका नानाजीवकी अपेक्षा एकजीव की अपेक्षा अंतर नांही है । शुक्ललेश्यावालावि मिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है। एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्टः इकतीम सागर कछु घाटि है । सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यमिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा अंतर गुणस्थानवत् है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ पल्यकै For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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