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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ९३ ॥ जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ पल्य काल है । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि अनिवृत्तिवादरसांपरा| यपर्यंतनिका गुणस्थानवत् काल है । तहां विशेष यहु- जो, असंयतसम्यग्दृष्टिका नानाजीव अपेक्षा सर्वकाल है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है उत्कृष्ट पचावनपल्य कछु घाटि काल है। | | पुरुषवेदवि मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है। उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ सागर है । सासादन सम्यग्दृष्टि आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायपर्यंतनिका | | गुणस्थानवत् काल है । नपुंसकवेदविर्षे मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट अनंतकाल है सो असंख्यातपुद्गलपरिवर्तन है । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायपर्यंतनिका गुणस्थानवत् है । विशेष यहु है जो, असंयतसम्यग्दृष्टिका नानाजीव अपेक्षा सर्वकाल है । एक जीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तेतीस सागर कछु घाटि काल है । वेदरहितनिका गुणस्थानवत् काल है ॥ कषायके अनुवादकरि च्यारि कषायनिविर्षे मिथ्यादृष्टि आदि अप्रमत्तपर्यंतनिका मनोयोगिवत काल है । दोय उपशमश्रेणीका दोय क्षपक श्रेणीका गुणस्थाननिका अर केवललोभका अर कषायरहितनिका गुणस्थानवत् काल है ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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