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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ९० ॥ अपेक्षा तौ सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट कोडिपूर्व कछु घाटि है ।। विशेषकरि गतिके अनुवादकरि नरकगतिविर्षे नारकीनिकै सातूंही पृथ्वीविर्षे मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा तौ सर्वकाल है । एकजीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दश सागर, सतरा सागर, बाईस सागर, तेतीस सागर, यथासंख्य अनुक्रमतें आयुपरिमाण है । सासादनसम्यग्दृष्टि अर सम्यमिथ्यादृष्टीका गुणस्थानवत् काल है । असंयतसम्यग्दृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है। उत्कृष्ट आयुःप्रमाण किछु घाटि। तिर्यग्गतिवि तिर्यंचनिकै नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट अनंतकाल है । सो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन है । सासादनसम्यग्दृष्टि अर सम्यग्मिथ्यादृष्टीका अरु संयतासंयतका गुणस्थानवत् काल है । असंयतसम्यग्दृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट तीन पल्य है । मनुष्यगतिविर्षे मनुष्यनिकै मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एक जीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट तीन पल्य पृथक्त्व कोडी पूर्व अधिक है। सासादनसम्यग्दृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य एकसमय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है । एक जीव अपेक्षा जघन्य एक समय उत्कृष्ट छह आवली है । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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