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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुषाद. पण अहिंसा वस्तुपर आदर जणाववा माटे एज आगे कहेछे. जे माटे सुखनी इच्छाकरनार कोइपण जीवनी तेओ हिंसा करता नथी, खरुं ज्ञान पण तेज के परने पीडा न थाय तेम वर्तवू, मतलबके प्राणातिपातथी निवत्त, एज अहिंसाप्रधान सिदान्तने जाणीने मुमुक्षु साधुनी इच्छित कार्यसिद्धि थायछे विशेषनी जरुर नथी.१०" आ प्रकारे सिद्धान्तनुं वचन होवाथी कोइ जीवनी हिंसा करवी नहीं. वळी श्रीराजप्रश्नीय उपांग सूत्रमा सूर्याभदेवना नाटक करवा संबंधी प्रश्नना अधिकारने विषे जणावेल छे के:-" हु इच्छुछ देवानुपियनी आगे भक्तिबहमानपूर्वक श्रीगौतमादिक श्रमणनिग्रन्थोने दिव्य एवी देवनी ऋद्धि, दिव्य एवी देवनी यति,दिव्य एवो देवनो प्रभाव देखाडवा अने बत्रीस प्रकारना नाटयविधिने बताववा इच्छुछु, त्यारे श्रमण भगवान श्रीमहावीर सूर्याभदेवे एम कोछते सूर्याभदेवना ए अर्थने आदर-स्वीकार न करे, सारं पण न माने,मौन रहे." आवां आगमनां वचन होवाथी बोलवामां बहुविचार राखवो जोइए. आ जिनवरोनो उपदेश ते विधिवादे मुनिओनो जाणवो, तेज निश्चयथी मुनिवरोए प्रयत्नपूर्वक सदहवो जोइए. २५० । बीजुअंग श्रीसूत्रकृतांगसूत्रना बीजा श्रुतस्कंधना बीजा उद्देशाने विषे त्रण पक्ष बताव्या छे, १ धर्मपक्ष २ अधर्मपक्ष अने ३ मिश्रपक्ष. २५१ । ए त्रण पक्षोनो अवतार धर्मपक्ष अने अधर्मपक्ष एबे पक्षनी अंदर करेल छ । पहेला धर्मपक्षमा सम्यग्दृष्टि अने बीजा अधर्मपक्षमां मिथ्यादृष्टि जीवो For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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