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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ उत्सूत्रतिरस्कारनामा-विचारपटः "भुजइ आहाकम्म, सम्म नय जो पडिकमइ लुद्धो ॥ सबजिणाणा विमुहस्स, तस्स आराहणा नथ्थि ॥१॥" जे आधाकम्मिक आहार ल्यइ । सम्यकप्रकारि पडिकमी पञ्चक्खाण न करइ । ते वीतरागना दर्शन बाहिरि ।। "गोयरग्गपविट्ठस्स, निसिज्जा जस्स कप्पइ ॥ इमेवि समणायारं, आवझइ अबोहियं ॥१॥" जे चारित्रियउ विहरवा जाई गृहस्थनइ घरि वाजवट मंडावी बइसइ ए अनाचार, बोधिवीजन नाश थाइ ॥श्रीसूयगडांगे___ "अंजू एते अणुवरया अणुटिया पुणरवि तारिसमा चेव" " अंजू" कहतां ए वात स्पष्ट गृहस्थ सावद्यानुष्टानथकउ अनुपरत-निवर्त्या नथी। जिणि कारणि सारंभ सपरिग्रह । तथा जके चारित्र लेईनइ सावद्यानुष्टानि प्रवर्तइ आधार्मिकादि आहार ल्यइ । ते पिण तेहवाईज गृहस्थ सरीषा जाणिवा ॥ श्रीउत्तराध्ययने" सयं गेहं परिचन्ज, परगेहंसि वावडे । णिमित्तेण य ववहरई, पावसमणित्ति वुचई ॥१॥ आयरिय परिचाई, परपासंडसेवए । गाणं गणिए दुब्भूए, पावसमणित्ति वुच्चई ॥२॥" इत्यादिवचनात् ।। आपापणा आचार्य छोडी गच्छ परंपरा छांडो जुआ २ गच्छ थया क्रोधादिवशथकी । ते किमप्रमाण करियइ ॥ श्रीउपदेशमालायां For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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