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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ उत्सूत्रतिरस्कारनामा-विचारपट. धूवघडीओ करंति ।" तिणि कारणि जाणियइ छइ साधुनउ उपदेश निरवद्य छइ ॥ तथा फूलपगरादि सर्व आपणइ हर्षि कीघउ प्ररूप्य सूत्रमाहि दीसइ छइ ॥ तथा सूरियाम आगलि पुण प्ररूपणा एतलीजछइ । “परं नाडयं करंति," इम प्ररूप्यउं नथी । अनई सूरियाभि नाटककीघउं दीसइ छइ ।। नाटक करिवानइ पनि “नो आढइ नो परिआणइ तुसिणीए संचिटई" एहवा अक्षर छइ । निषेधइ नथो प्ररूपणा पुण नथी । सथा-श्रीकेशीकुमारश्रमण प्रदेशीराजा सभाई बइसिवा भणी प्रश्नि कीधइ-" एसा उजाणभूमी एस तुमं चैव जाणसि"। परं प्रतिबोधनउ लाभ जाणी बइसि इम कां न काउं । अथवा "अहासुई" ए भाषा कांई न बोली ॥ तथा दाननइ अधिकारि “ पुचि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे मा भविज्जासि"। एहवउ वचन चिहं दृष्टांत सहित काऊं विम उघाडउं इम म्यइ न काउं । श्रावक दानशाला मंडावी दानद्यइ तओ रमणीय थाइ । तथा श्री आगममाहि ठामि ठामि दानना भावना कथक वचन "अवगुत्तदुवारा ऊसियफलिहा" एहवा श्रावकनई अधिकारि छ।।। तउ इम जाणिज्यो साधु बोलतउ सावध थतु बीहइ । तथा चरितानुवादि सूत्रमाहि ठामि ठामि श्रीजिनागमनि सांभल्यइ प्रीतिदान साढाबारलाख, पहिलउं एकलाख आठसहस ए प्रीतिदान । तथा वांदिवानइ काजि अनेक महोत्सव श्रीप्रथम उपांगि-कूणिकनइ अधिकारि । एवं For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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