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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवे छे. एमना बोलवापर आपणे ध्यान आपq नही, आपणे जे करता होइए ते करता रहीये" आ प्रकारे समजण विनाना अज्ञानीलोकोना आचार्यश्री उपर वचनना (वाचिकलेखित) हुमला थया पण समर्थ आत्माओ आवा काकारवथो डरता नथी. प्रतिपक्षीओ फावे तेम कहे तेमनी तेओने तमा होती नथी, तेमने भय मात्र जिनेश्वर-परमात्मानी आणानोज रह्या करेछे, ते वीतरागनी आणा कोइ रोते पण विराधाय नही अने केम आराधाय एनामाटेज सदा सावधान-उजमालताने धारणकरनारा होय छे. लोको तरतमां एमने अथवा एमना वचनोने मानो या न मानो पण तेमना काने सूत्रानुसारे स्व-परना हितनी खातर तेमनु कर्तव्य शुंछे ? ते जणावqज जोइए, आवो निश्चय ए महापुरुषोना अंत:करणमा रहेल होयछे, तेथी श्रीवीतरागदेवनी आज्ञा शी रीते आराधाय ? शुद्ध देव-गुरु अने धर्मनी सेवना शी रोते थइ शके ? श्रीजिनेश्वरनी प्रतिमाने केवा विधिए वंदन पूजन करवू ? आराधवा योग्य पर्वतिथीओ आगम-सिद्धान्तमां का कइ बतावेल छे ? सूत्र-पंचांगीमा प्रतिक्रमण करबानो विधि शोछे ? अने हाल जे करायछे ते विधि आगमानुसारी छे के कांइ फेरफार छ ? साधुनी करणी केवी होय? तेम माधु-मुनिराजनो उपदेश केवो होय ? सर्वविरतिमुनि सावधनो उपदेश करो शके के नही ? हालमां केटलाएक आगममर्यादा समज्या विना उपदेश करेछे ते निरवद्यउप For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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