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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ श्रीसामाचारी समाश्रित-श्रीसप्तपदी शास्त्रम् . यत:-"जइ चउदस पुव्वधरो, वसइ निगोएय अणतयं कालं । निद्दाइपमारणं ता तं कह होहिसिरे जीव! ॥१॥ इतिवचनात्।। मूल-दिणचिंतयथ्य करणी, निद्दा थीणद्धिया भवे जस्स । गच्छइ स दुग्गइमहो, निद्दपमाओ महासत्तू ॥१४४॥ करिवर दंतुक्खणणं, कयं च निद्दप्पमायदोसेणं । मुणिणा सुव्वइ एसो, दिटुंतो बहुसु सथ्थेसु ॥१४५॥ एएण कारणेणं, निद्दा नहु होइ जिणुवएसेणं । तीएचिय परि हरणं, विहीए भणियं जिणंदेहि ॥१४६॥ इइ उद्वित्ता इरियं, पडिक्कमित्ता करेति उस्सग्गं । निसिपच्छित्तविसोहण,-कुसुमिणउहडावणढाए ॥१४७॥ ऊसाससयपमाणं, अडअहियं कारणं मुणेऊणं । सकथ्थवं भणित्ता, गिण्णइ वेरत्तियं कालं ॥१४८|| पट्टविऊण विहिणा, सज्झायं ता कुणंति सज्झायं । संवेगसमावन्नो, असंजया जह न जग्गंति ॥१४९॥ अवसेसनिसिमुहत्ते, गिण्णइ पाभाइयं मुणी कालं । तिथ्योभवंदणेहि, आयरियाईय वंदित्ता ॥१५॥ ठावति पडिकमणं, चउथ्यएणं च वंदणेणंति । राईए जह भणिय, मुत्तनिज्जुत्तिवित्तीम् ॥१५॥ आवस्स यचुण्णीए, पुवायरियेहिं विहियगत्थेसु । केवलिवयणाणुगयं, जह भणियं तह य वक्खामि ॥१५२॥ श्रीउत्तराध्ययने २६ अध्ययने-"आगए कायवुस्सग्गे, सव्वदुक्खविमुक्खणे । काउस्सग्गं तो कुजा, सव्वदुक्खविमु For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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