SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिनामां प्रेसकोपी तैयार करी हती. ते मलग्रन्थमा जे जे सिद्धान्त-सूत्रोना मूलपाठो आव्या. ते ते मूलपाठोने - गमनी प्रतो भंडारमाथी काढी, तेनी साथे मेलवी लख्या छे. ते सूत्र-आगमना मूलपाठो सुखेथी समजाय एटला माटे तेनी टोका-वृत्ति पण ज्यां ज्यां मूलग्रन्थमां न हती त्यां त्यां नाना टाइपनी अंदर कौंसमां लीधेल छे. २७ पानावाळी प्रतमा केटलीक जगाए पंक्तिओ पानानी कांबीमां बारीक अक्षरोथी टिप्पणीरुपे लखेल हती, ते पण नाना टाइपमा लीधेल छे, ज्या ज्यां लीधेल छे, त्यां त्यां आ प्रमाणे सूचन करवामां आवेलछे के आ बीना लखेल पानानी कांबीमां छे. ए टिप्पणीओ पाछलना थपला आचार्योनी करेली जणाय छे. आ ग्रन्थ आचार्यदेवे वि. सं. १५९१ना कार्तिक सुदी पूर्णिमाना दिवसे रची संपूर्ण करेल छे, ते बीना सूरिजीए ग्रन्थना अंतमा पोतेज आ प्रकारे जणावेल छे"ससिनंदति हिपमाणे, विकमसंबछराउ परिसंमि । कत्तियनिमदिवसे, लिहियमिणं पासचंदेण ॥ २८५।" बीजो ग्रन्थ " उत्सूत्रतिरस्कारनामा-विचारपट" जेमा सूत्र-सिद्धान्तना अनुसारे मुनिराजोनो उपदेश केवा प्रकारनो होय? शुं शुं आचरी शके ? अने शुं शं न आचरी शके ? इत्यादि घणा विचारो जणान्या छे. ते वाचवाथी वाचकने अनुभव थइ शके तेम छे, तेथी ए संबंधि विशेष जाण For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy